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Thursday, July 29, 2010

पुलिस और तमाशबीनों के बीच बिलकुल अकेला था मैं

अब लग रहा कि अरुण जी से पूछ लेता कि बिना पूछे मेरा ऑफ क्यूं चेंज किया सर? हर बार मेरा ऑफ Friday को होता है लेकिन इस बार ना जाने क्यूं ऑफ Wednesday कर दिया गया। मुझे भी कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ रहा था इसलिए मैंने अरूण जी से कुछ नहीं कहा। घर वाले कह रहे हैं कि इस बार भी ऑफ Friday ही होता तो शायद ये सब ना हुआ होता। शायद होनी टल जाती।

अब लग रहा है जैसे Wednesday ऑफ मिला ही इसलिए था कि मेरा एक छः फुटे दबंग ड्राइवर से झगड़ा हो जाए, मेरा माथा, नाक और ठोड़ी फूट जाए, ठोड़ी पर पांच टांके आएं, मेरा 6290/- का चश्मा खो जाए और 3000/- का भिल्लड़ अस्पताल में बन जाए। और कोई मदद करने वाला तक ना हो।

हुआ यूं कि मैं अपनी पत्नी और बेटी के साथ कनॉट प्लेस गया था। अक्सर ऑफ वाले दिन हम लोग मम्मी को लेने उनके ऑफिस रक्षा भवन चले जाते हैं। लांग ड्राइव भी हो जाती है और एक दिन मम्मी भी बसों में धक्के खाने से बच जाती हैं। मम्मी का ऑफिस छूटने में अभी वक़्त था तो हम लोग साउथ इंडियन खाने cp में सरवना भवन चल गए। खाया पिया और जनपथ चले आए। बेटी कार में ही सो चुकी थी। पत्नी को जूट का बैग लेना था, मैंने कहा बच्ची को सोने देते हैं तुम जाकर बैग ले आओ, मैं यहीं रोड साइड गाड़ी लगा कर इंतज़ार करता हूं। बीवी चली गई तो मैंने अपने बॉस मिलिंद जी को फ़ोन लगा कर एक कार्यक्रम के संबंध में उनसे चर्चा की। बात करते-करते मैंने देखा की आगे और जगह थी। बात ख़त्म करके मैंने गाड़ी gap में एक Tavera टेक्सी के पीछे लगा दी। गाड़ी लगाने की देर थी कि उसका ड्राइवर उतर कर गंदी-गंदी गालियां बकने लगा। जबकि मेरी गाड़ी उसकी गाड़ी से काफी फ़ासले पर थी लेकिन पता नहीं क्यूं वो ग़ुस्से में पागल सा हो रहा था। मुझे अभी तक उसके ग़ुस्से की वजह समझ नहीं आई। मैंने कहा गाली क्यूं बक रहा है भाई, आराम से बात कर ले। वो धूंसा दिखाकर और गालियां बकने लगा। मुझे अक्सर ग़ुस्सा नहीं आता लेकिन कोई किसी को बिना बात ऐसे गाली कैसे बक सकता है। मैंने उससे कहा कि रूक साले तुझे अभी देखता हूं।

ये कह कर में बेटी को गाड़ी में सोता छोड़कर पीछे खड़ी पीसीआर की ओर दौड़ा। पीसीआर में एक ही पुलिसवाला बैठा था। मैंने उसे अपने स्टार न्यूज़ का परिचय देते हुए बताया कि एक ड्राइवर बेवजह गाली-गलौज कर रहा है। वो बोला कि जी मैं तो गाड़ी में अकेला हूं कभी भी कोई वायरलैस आ सकता है। साहब राउडं पर गए हैं, आप रुको अभी आते होंगे। मैंने कहा मेरी बेटी गाड़ी में अकेले सो रही है, मैं रुक नहीं पाउंगा आप जल्दी से किसी को भेजो। कह कर मैं जैसे ही अपनी कार की तरफ आया तो देखा कि वो अपनी टेक्सी लेकर भाग रहा है। मैं चिल्लाया। लेकिन वो नहीं रूका। वो लगातार गालियां बक रहा था। मैंने भागकर उसका गिरेबान पकड़ लिया। वो मेरे हाथ पर धूंसे मारने लगा। मुझे ग़ुस्सा आ गया और मैं उसके एक ज़ोरदार थप्पड़ रसीद कर दिया। बस! वो उतरकर मुझ पर पिल पड़ा। मैंने देखा पुलिस के कुछ लोग उधर ही आ रहे थे। मैंने तुरंत उनसे मदद मांगी लेकिन उसने पुलिस के सामने ही मेरे चेहरे पर तीन पंच मारे। मेरा ray ban का मंहगा चश्मा वहां गिर गया और उसे फ़ौरन ही कोई उचक्का लेकर भाग भी गया। देखिए, ये सब दिल्ली पुलिस के मुस्टंड़ों के सामने हो रहा था। उसके हाथ में लोहे का कड़ा था जिससे मुझे ज़्यादा चोट पहुंची। मेरी नाक और ठोड़ी से खून का फव्वारा छूटने लगा। मेरा सिर चकराने लगा। तमाशबीन इक्टठा होने लगे। मैंने जैसे-तैसे फ़ोन करके अपनी पत्नी को वापस बुलाया। और चुंकि मिलिंद सर का नंबर री-डायल लिस्ट में था, सो उन्हे फिर से फ़ोन लगाया लेकिन शायद मिलिंद वयस्त रहे होगें, उन्होने फ़ोन नहीं उठाया। मुझे बेहोशी छाने लगी थी। बेटी अभी भी कार में सो रही थी। पत्नी लौटी तो मेरी हालत देखकर बौखला उठी। मेरा चेहरा ख़ून से शराबोर था। उसने वहां खड़े पांच-छः पुलिसवालों से मदद मांगी। पुलिसवाले हंस रहे थे। बोले- बोलो मैडम क्या करना है... ड्राइवर तो ये रहा हमारे साथ.... चलो थाने ले चलते हैं इसको... आपको भी चलना पड़ेगा थाने....।

मैंने कहा- मैं थाने जाने की स्थिति में नहीं हूं, मैं पहले हॉस्पिटल जाऊंगा। पुलिसवाले बोले कि ठीक है...फिर आप हस्पताल जाइए.... इसे छोड़ देते हैं। मैं पुलिस और वहां के लोगों का रवैया देखकर हैरान था जो चाहते थे कि मैं पहले अपने बीवी-बच्चों और अपने बारे में सोचूं और ड्राइवर को माफ़ कर दूं क्योंकि वो ग़रीब है बेचारा। इससे ज़्यादा वहां कोई मेरी मदद को तैयार नहीं था। बल्कि लोगों ने मेरी बीवी को यहां तक समझाया कि मैडम आप इस चक्कर में पड़ी रहेंगी और दस मिनट में यहां आपकी गाड़ी का सारा सामान गायब हो जाएगा, भाईसाहब को समझाइए और निकलिए यहां से। पुलिस अब तक दूर जाकर खड़ी हो चुकी थी। मेरी बीवी ने पुलिस से फिर कहा कि आप उसे पकड़ते क्यूं नहीं.... मेरे हसबैंड स्टार न्यूज़ में हैं, एंकर हैं और देखिए उनके चेहरे से कितना खून बह रहा है। एक पुलिसवाले ने तंज़ कसा- टीवी पर तो ये हम लोगों को भी खूब दिखाते हैं। मुझे लग रहा था मैं बेहोश हो जाऊंगा। मैंने अपनी पत्नी को बुलाया और कहा कि यार, मुझे चक्कर आ रहे हैं अभी चलो। मैंने उसकी टैक्सी का नंबर नोट किया- UP 17C 8622, उसका नाम पूछा- नेगी। उसका नंबर लिया। और जैसे-तैसे मां के ऑफिस तक पहुंचा।

मम्मी के ऑफिस पहुंचकर मुझे नहीं पता फिर क्या हुआ। मैं बेहोश हो गया। मम्मी के ही एक भले मानस सहकर्मी ए.के.शर्मा मेरी कार ड्राइव करके लाए। मैं पूरे रास्ते गफ़लत में रहा। नौएडा आते ही मैक्स अस्पताल पहुंचा। अस्पताल पहुंचते ही मुझे उल्टियां हुईं। डॉक्टर ने दिलासा दिया कि कोई घबराने की बात नहीं है। ठोड़ी पर टाकें आएंगे। पांच टांके आए। सातवें दिन टांके कटेंगे।

अब जब होश में आया हूं तो लग रहा है नेगी को सबक सिखाऊं। कम से कम FIR तो करा ही दूं उसकी। लेकिन अभी-अभी सहारा के मेरे दोस्त प्रशांत, अब्बास, मुर्तज़ा और बृज भूषण आए थे, बोले- छोड़ो यार, जान बची तो लाखों पाए। कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। आगे से याद रखो, सड़क पर पंगा कभी नहीं लोगे। हाथ जोड़ो और निकल लो वहां से, ज़माना नहीं है भाई किसी से उलझने का।

कमाल है, क्या ज़माना इतना खराब हो चुका है कि आपसे कोई कभी भी कहीं भी पंगा लेले लेकिन आप किसी से पंगा मत लो। पुलिस भी मदद नहीं करती। सच कह रहे हैं शायद वो। जनपथ में पुलिस और सैंकड़ों तमाशबीनों के बीच मैं कितना अकेला था। वो धूंसे की जगह मुझे चाकू या गोली भी मार सकता था।

यहां मेरे साथ जो कुछ हुआ उसे सीधा-सपाट लिख रहा हूं। वो, जो उस वक़्त मैंने महसूस किया। जो अनुभव किया। उसे दर्द के चलते अभी बयान नहीं कर पा रहा हूं। हां, ray ban का अपना वो चश्मा बहुत मिस कर रहा हूं। बहुत समय इंतज़ार के बाद ले पाया था उसे।

Saturday, July 10, 2010

ग़ज़ल कहने की ख़ता माफ़ हो...।

अब अपना किसको कहोगे मियां मुस्कान तुम,
कि ज़माना देखके, पकड़े खड़े हो कान तुम।

लो भुगतो, कि आ गई मुफ़लिसी तुम पर,
तमाम उम्र तो बघारते रहे हो शान तुम।

तुम चबाते हो अपने होंठ परेशां होकर,
लोग समझते हैं खाते हो बहुत पान तुम।

एक मासूम सा बच्चा तुम्हारे भीतर है,
इस बच्चे की न ले लेना, कभी जान तुम।

मैं भला तो जग भला, अमां यार छोड़ो भी,
सूरत से दिखते हो, या वाकई हो नादान तुम।

रोटी, कपड़ा और मकान, बातों से नहीं मिलते हैं,
बड़े ठाठ से रहते हो बना के ख़्वाबिस्तान तुम।

ना रोते ना हंसते हो, ना हिलते ना डुलते हो,
सच को सुनकर गोया हो गए कब्रिस्तान तुम।।