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Thursday, March 2, 2017

रिश्तों की सभी लाइनें व्यस्त हैं

रिश्तों की सभी लाइनें व्यस्त हैं
-अनुराग मुस्कान

ऑफिस में मेरे एक मित्र पास ही बैठकर मोबाइल पर कैंडी क्रश खेल रहे थे, तभी उनके फ़ोन की घंटी बजी और गेम में आए व्यवधान का गुस्सा उनके चेहरे पर उभर आया. फ़ोन रिसीव करके बोले अभी एक अरजेंट मीटिंग में हूं फ़्री होकर फ़ोन करता हूं. फ़ोन कटते ही फिर कैंडी क्रश खेलने लगे. मैंने पूछा किसका फ़ोन था तो बोले- पत्नी का. मैं ये सुनकर हतप्रभ रह गया. वैसे मोबाइल क्रांति के युग में ये किसी एक आदमी की कहानी नहीं है. व्यस्तता के बहाने से हम अब सबसे कटते और बंटते जा रहे हैं.

ऐसे ही, बस स्टाप हो या बस हो, मैट्रो का स्टेशन हो या मैट्रो ट्रेन हो, ऑटो रिक्शा हो, कहीं भी लोग ख़ुद से कटने की हद तक फ़ेसबुक और व्हाट्स एप से जुड़े मिलते हैं. इस फ़ेसबुक ने भले ही सुदूर देशों में रह रहे दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच की दूरियों को ख़त्म कर दिया हो लेकिन इसका एक सबसे बड़ा साइडइफ़ैक्ट ये भी है कि इसने दिलों में मीलों के फ़ासले पैदा कर दिए हैं. फ़ेसबुक परस्पर रिश्ते निभाने की औपचारिकता के काम आने वाले माध्यम के तौर पर आजकल सबसे लोकप्रिय है. ख़ासकर फ़ेसबुक आजकल लोगों का सबसे बड़ा टाइमपास होने का साथ-साथ रिश्तों की एक नई परिभाषा भी लिख रहा है. फ़ायदा ये कि परिवार और रिश्तेदारी में वैचारिक मतभेद रखने वाले भी फ़ेसबुक पर एक साथ जुड़े हैं और नुकसान ये कि जुड़े होने के नाम पर वो सभी फ़ेसबुक की आभासी दुनिया में अपने रिश्तों को लाइक, शेयर और कमेंट के अनुपात में तौल रहे हैं. दिन भर दिमाग़ इसी उधेड़बुन में रहता है कि अब तक फलां ने पोस्ट लाइक क्यूं नहीं किया, फलां ने पोस्ट पर ऐसा कमेंट क्यूं कर दिया, फलां ने उसका पोस्ट तो शेयर किया लेकिन मेरा नहीं किया. 

लोग व्यस्तता के नाम पर एक-दूसरे को समय नहीं दे पा रहे और सबसे ज़्यादा व्यस्त वो फ़ेसबुक पर ही रहते हैं. और ग़लती से फ़ेसबुक से अगर थोड़ा समय बच भी जाए तो वो समय व्हाट्स एप ले लेता है. ये बात सही है कि फ़ेसबुक ने लोगों के मनोभावों और मनोव्यथाओं को सार्वजनिक रूप से उजागर करके उन्हे पहले ये ज़्यादा मुखर बना दिया है लेकिन इस तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि हम आज पांच हज़ार फ़ेसबुक फ्रैंडस् की भीड़ में भी इतने अकेले हो गए हैं कि अपना दर्द और खुशियां बांटने के लिए हमें प्रत्यक्ष माध्यम से ज़्यादा एक अप्रत्यक्ष माध्यम पर निर्भर रहना पड़ रहा है. हम अंजाने में अपनी स्थितियों के साथ ख़ुद को बीच बाज़ार में ले आए हैं. हमारे जीवन की आपाधापी का इस फ़ेसबुक ने सबसे ज़्यादा फ़ायदा उठाया है. दिनभर पैसा कमाने की भागदौड़ में किसी से बिना मतलब के मिलने का हमारे पास अब समय नहीं बचा है. फ़ोन पर एक साथ सबका हालचाल लेने की फुर्सत उस भागदौड़ की थकावट ने हमसे छीन ली है. हमारी इसी मजबूरी का फ़ायदा उठाते हुए फ़ेसबुक हमारे रिश्तों में घुस गया और अब उन रिश्तों का भविष्य भी तय कर रहा है. एक दूसरे का पोस्ट लाइक, शेयर और कमेंट करते-करते हम लोगों से रिश्ते बनाने के भ्रम में -रिश्तों के एक मिथक भरे सफ़र पर निकल पड़े हैं. 

जिनसे हम कभी मिले ही नहीं वो फ़ेसबुक पर हमारे दोस्त बन गए और जो हमारे दोस्त हैं उनसे हम फ़ेसबुक के अलावा कभी और कहीं मिलने का समय ही नहीं निकाल पा रहे. दोस्ती की प्रगाढ़ता का पैमाना अब ये है कि आपकी पोस्ट को किसने-किसने लाइक किया है. जिसने लाइक किया वो दोस्त, जिसने शेयर किया वो पक्का दोस्त और जिसके कमेंट किया वो जिगरी दोस्त. पोस्ट पर कमेंट में की गई आलोचना लोगों के दिलों में एक-दूसरे को लेकर खटास पैदा कर रही है. किसी ने अगर पोस्ट लाइक नहीं किया तो मनमुटाव की स्थिति पैदा हो रही है. एकलाइकअब दोस्ती और रिश्तों के बीच पुल का काम कर रहा है. पहले जिन मतभदों को लोग घर की चारदीवारी में ही बातचीत के ज़रिए सुलझा लिया करते थे अब उन्ही मतभेदों को फ़ेसबुक पर उजागर करके पहले से भी ज़्यादा उलझा रहे हैं. लोग अपने अनजाने दोस्तों के सामने अपने जान पहचान वालों की पोल खोल रहे हैं. रिलेशनशिप अपडेट करने की सनक में रिश्तों की मिठास और कड़वाहट का फ़ेसबुक पर कॉकटेल बना रहे हैं. फ़ेसबुक पर दोस्ती और रिश्तों की नुमाईश का एक शोर मचाता तमाशा सा लगा हुआ है और लोग जो बात एक-दूसरे से आमने-सामने कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते उसे फ़ेसबुक पर लिखकर ख़ुद को उस तमाशे का हास्यास्पद हिस्सा बनाते जा रहे हैं.


विडंबना ये कि लोग अब अपनी जान पहचान वालों की ख़ुशियों और दुखों में फ़ेसबुक के ज़रिए ही शामिल हो रहे हैं. फ़ेसबुक पर ही लोग एक-दूसरे का हालचाल पूछकर औपचारिकता पूरी कर रहे हैं. पांच मिनट में बोली जाने वाली बात को लिखने में पंद्रह मिनट लगाकर लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को ये बता रहे हैं कि उनक पास आजकल बिलकुल भी समय नहीं बचता है. सच तो ये है कि फ़ेसबुक और व्हाट्स एप को लॉगइन करके हम कई लोगों से आत्मिय तौर पर लॉगऑफ़ हो चुके हैं. क्यूंकि फ़ेसबुक पर लोग तभी तक आपके बेहद करीब नज़र आते हैं जब तक आप फ़ेसबुक पर ऑनलाइन होते हैं, ऑफलाइन होते ही अपने अकेलेपन की छटपटाहट हमें फिर से ऑनलाइन होने के लिए उकसाती है और यही आदत हमें हमें रिश्तों को लेकर शंकित और आशंकित होने वाले अनवरत क्रम में फिर से व्यस्त कर देती है.