अभी-अभी एक हवाईजहाज़ सिर के ऊपर से उड़ कर निकला है। साल भर पहले जब पहली बार सचमुच हवाईजहाज़ में बैठा तो एहसास हुआ कि बचपन में इस हवाईजहाज़ ने भी कितना इमोश्नल अत्याचार किया है हम पर। मन में, पापा से मिलने की कितनी बड़ी उम्मीद जगाई थी इसने, जो आगे चलकर जीवन की उलझनों को सुलझाने में पता नहीं कब और कहां गुम हो गई।
बचपन में स्कूल जाते हुए नन्ही बहन पूछा करती थी कि ‘भईया, पापा हमारे पास नहीं आ सकते तो क्या हम भी पापा के पास नहीं जा सकते?’
- ‘पापा, भगवान जी के पास चले गए हैं पागल।’
- ‘तो क्या भगवान जी के पास अपन नहीं जा सकते, बोलेंगे हम पापा से मिलने आए हैं, हमारे पापा यहां आ गए हैं। प्लीज़ मिलवा दीजिए हमारे पापा से।’ वो मासूमियत से पूछती।
- ‘जा सकते हैं शायद, प्लेन में बैठकर जा सकते हैं, लेकिन उसके लिए बहुत सारे पैसे लगते हैं। एक दिन जाएंगे, ज़रूर।’
- ‘नहीं.... अभी चल ना मुझे मिलना है पापा से।’
और नन्ही बहना आसमान में उड़ते एरोप्लेन को देखकर रोने लगती। स्कूल पास आते ही मैं उसे टीचर का डर दिला कर चुप करा देता। वो आंसू पोछकर चुप तो हो जाती थी लेकिन उसकी उसकी सुबकियां क्लॉस में दाखिल होने तक जारी रहतीं। ऐसा लगभग रोज़ ही होता था। क्योंकि स्कूल के पास ही खेरिया हवाईअड्डा था और थोड़े-थोड़े अंतराल पर वहां से हवाईजहाज़ होकर गुज़रते थे। किसी-किसी रोज़ तो बहन पापा को याद करके रोते-रोते ‘मम्मी के पास जाना है’ की ज़िद पकड़ बैठती थी। फिर उसे उस रिक्शे में ही वापस भेजना पड़ता था।
मैं तब चौथी क्लास में था और बहन पहली क्लास में। हम दोनों भाई-बहन एक साथ साईकिल रिक्शा में स्कूल जाते थे। स्कूल, आगरा का केन्द्रीय विद्यालय न. 1। घर से कोई आठ किलोमीटर दूर।
पिता के देहांत के बाद हम नागपुर से आगरा चले आए थे। हालत ही कुछ ऐसे बने कि नाना-नानी मां को उसके ससुराल वालों के साथ नहीं छोड़ सकते थे। उन्होने कभी ख़ुद भी इच्छा जाहिर नहीं की मां को अपने साथ ले जाने की। वजह थी पापा की नौकरी। पापा के बाद किसे मिले उनकी नौकरी। दादी चाहती थीं कि नौकरी मेरे बेरोज़गार चाचा को मिले। नाना-नानी चाहते थे कि नौकरी मेरी मां को मिले, जिससे हम भाई-बहन की परवरिश ठीक से हो जाए। हालांकि मां ने पापा के जीते-जी कभी घर से बाहर निकल कर नौकरी के बारे में सोचा तक नहीं था। हालात सब कुछ करवा देते हैं, नौकरी मां को मिली। और मां के ससुराल वाले इस बात से नाराज़ होकर इस हाल में उसे और अकेला कर गए। पिता की मृत्यू के बाद मां की दुनिया पूरी तरह बदल चुकी थी। 28 साल की थी मेरी मां जब पापा इस दुनिया से गए। मेरी बहन को तो पापा का चेहरा तक याद नहीं। उनके साथ बिताया एक पल भी याद नहीं। मेरी यादों में फिर भी पापा के लाड़-प्यार के कुछ धुंधलके ज़रूर आज भी उमड़ते घुमड़ते हैं।
हार्ट अटैक आया था पापा को। रात को सोते समय पलंग से गिर पड़े थे। मां की गोद में आख़िरी सांस ली। मां ने पापा के चेहरे पर पानी के छींटे मारे, हाथेलियों और तलवों को रगड़ा, लेकिन पापा फिर नहीं जागे। मुझे नहीं पता था पापा अब नहीं लौटेंगे। बहन को तो इतना भी नहीं पता था। हम दोंनो बस मां को देखकर रोए जा रहे थे। मुझे लगा पापा बीमारी में बेहोश हो गए हैं, हॉस्पिटल से ठीक होकर आ जाएंगे। लेकिन वो ना ठीक हुए ना वापस आए।
उनके दाह संस्कार का वो पल मेरे बालमन के लिए सबसे ज्यादा पीड़ादायक था। पापा मेरे सामने थे। मौन। चिरनिद्रा में। वो जाग जाते तो सब ठीक हो जाता। लेकिन....। मैंने रोते हुए पता नहीं किससे कहा था कि पापा के उपर इतनी भारी लकड़ियां मत रखिए प्लीज़! पापा को बहुत चोट लग रही होगी, दर्द हो रहा होगा। मुझे वहां से कुछ देर के लिए हटा दिया गया। फिर कुछ देर बाद पापा को मुखाग्नि देते हुए समझ नहीं पा रहा था कि पापा हमें छोड़कर क्यूं चले गए। जबकि टॉयलेट और ऑफ़िस जाने के सिवा पापा कभी हमें अकेले नहीं छोड़ते थे।
आजतक नहीं समझ पाया हूं कि पापा क्यूं चले गए। आज भी पग-पग पर पापा की ज़रूरत महसूस होती है। उनकी कमी खलती है। उम्र और समझ के साथ मेरी और बहन की वो उम्मीद भी कब की टूट चुकी है कि पापा से मिलने हवाईजहाज़ से जाना मुमकिन है।
साल भर पहले जब पहली बार हवाईजहाज़ में बैठा तो सोचा कि इस हवाईजहाज़ ने भी कितना इमोश्नल अत्याचार किया है हम भाई-बहन पर। और मुस्कुरा दिया। मैं ज़मीन से कई हज़ार फीट की ऊंचाई पर था, लेकिन पापा से फिर भी बहुत दूर.....। आज भी जब कोई हवाईजहाज़ उड़ता देखता हूं तो बचपन की उन यादों का मेला लग जाता है कुछ देर के लिए।
बचपन में स्कूल जाते हुए नन्ही बहन पूछा करती थी कि ‘भईया, पापा हमारे पास नहीं आ सकते तो क्या हम भी पापा के पास नहीं जा सकते?’
- ‘पापा, भगवान जी के पास चले गए हैं पागल।’
- ‘तो क्या भगवान जी के पास अपन नहीं जा सकते, बोलेंगे हम पापा से मिलने आए हैं, हमारे पापा यहां आ गए हैं। प्लीज़ मिलवा दीजिए हमारे पापा से।’ वो मासूमियत से पूछती।
- ‘जा सकते हैं शायद, प्लेन में बैठकर जा सकते हैं, लेकिन उसके लिए बहुत सारे पैसे लगते हैं। एक दिन जाएंगे, ज़रूर।’
- ‘नहीं.... अभी चल ना मुझे मिलना है पापा से।’
और नन्ही बहना आसमान में उड़ते एरोप्लेन को देखकर रोने लगती। स्कूल पास आते ही मैं उसे टीचर का डर दिला कर चुप करा देता। वो आंसू पोछकर चुप तो हो जाती थी लेकिन उसकी उसकी सुबकियां क्लॉस में दाखिल होने तक जारी रहतीं। ऐसा लगभग रोज़ ही होता था। क्योंकि स्कूल के पास ही खेरिया हवाईअड्डा था और थोड़े-थोड़े अंतराल पर वहां से हवाईजहाज़ होकर गुज़रते थे। किसी-किसी रोज़ तो बहन पापा को याद करके रोते-रोते ‘मम्मी के पास जाना है’ की ज़िद पकड़ बैठती थी। फिर उसे उस रिक्शे में ही वापस भेजना पड़ता था।
मैं तब चौथी क्लास में था और बहन पहली क्लास में। हम दोनों भाई-बहन एक साथ साईकिल रिक्शा में स्कूल जाते थे। स्कूल, आगरा का केन्द्रीय विद्यालय न. 1। घर से कोई आठ किलोमीटर दूर।
पिता के देहांत के बाद हम नागपुर से आगरा चले आए थे। हालत ही कुछ ऐसे बने कि नाना-नानी मां को उसके ससुराल वालों के साथ नहीं छोड़ सकते थे। उन्होने कभी ख़ुद भी इच्छा जाहिर नहीं की मां को अपने साथ ले जाने की। वजह थी पापा की नौकरी। पापा के बाद किसे मिले उनकी नौकरी। दादी चाहती थीं कि नौकरी मेरे बेरोज़गार चाचा को मिले। नाना-नानी चाहते थे कि नौकरी मेरी मां को मिले, जिससे हम भाई-बहन की परवरिश ठीक से हो जाए। हालांकि मां ने पापा के जीते-जी कभी घर से बाहर निकल कर नौकरी के बारे में सोचा तक नहीं था। हालात सब कुछ करवा देते हैं, नौकरी मां को मिली। और मां के ससुराल वाले इस बात से नाराज़ होकर इस हाल में उसे और अकेला कर गए। पिता की मृत्यू के बाद मां की दुनिया पूरी तरह बदल चुकी थी। 28 साल की थी मेरी मां जब पापा इस दुनिया से गए। मेरी बहन को तो पापा का चेहरा तक याद नहीं। उनके साथ बिताया एक पल भी याद नहीं। मेरी यादों में फिर भी पापा के लाड़-प्यार के कुछ धुंधलके ज़रूर आज भी उमड़ते घुमड़ते हैं।
हार्ट अटैक आया था पापा को। रात को सोते समय पलंग से गिर पड़े थे। मां की गोद में आख़िरी सांस ली। मां ने पापा के चेहरे पर पानी के छींटे मारे, हाथेलियों और तलवों को रगड़ा, लेकिन पापा फिर नहीं जागे। मुझे नहीं पता था पापा अब नहीं लौटेंगे। बहन को तो इतना भी नहीं पता था। हम दोंनो बस मां को देखकर रोए जा रहे थे। मुझे लगा पापा बीमारी में बेहोश हो गए हैं, हॉस्पिटल से ठीक होकर आ जाएंगे। लेकिन वो ना ठीक हुए ना वापस आए।
उनके दाह संस्कार का वो पल मेरे बालमन के लिए सबसे ज्यादा पीड़ादायक था। पापा मेरे सामने थे। मौन। चिरनिद्रा में। वो जाग जाते तो सब ठीक हो जाता। लेकिन....। मैंने रोते हुए पता नहीं किससे कहा था कि पापा के उपर इतनी भारी लकड़ियां मत रखिए प्लीज़! पापा को बहुत चोट लग रही होगी, दर्द हो रहा होगा। मुझे वहां से कुछ देर के लिए हटा दिया गया। फिर कुछ देर बाद पापा को मुखाग्नि देते हुए समझ नहीं पा रहा था कि पापा हमें छोड़कर क्यूं चले गए। जबकि टॉयलेट और ऑफ़िस जाने के सिवा पापा कभी हमें अकेले नहीं छोड़ते थे।
आजतक नहीं समझ पाया हूं कि पापा क्यूं चले गए। आज भी पग-पग पर पापा की ज़रूरत महसूस होती है। उनकी कमी खलती है। उम्र और समझ के साथ मेरी और बहन की वो उम्मीद भी कब की टूट चुकी है कि पापा से मिलने हवाईजहाज़ से जाना मुमकिन है।
साल भर पहले जब पहली बार हवाईजहाज़ में बैठा तो सोचा कि इस हवाईजहाज़ ने भी कितना इमोश्नल अत्याचार किया है हम भाई-बहन पर। और मुस्कुरा दिया। मैं ज़मीन से कई हज़ार फीट की ऊंचाई पर था, लेकिन पापा से फिर भी बहुत दूर.....। आज भी जब कोई हवाईजहाज़ उड़ता देखता हूं तो बचपन की उन यादों का मेला लग जाता है कुछ देर के लिए।
37 comments:
touching
@पापा"इस विषय पर कुछ नहीं कहा जाता मुझसे .
दिल को छू लेने वाले मार्मिक जज्बात .
बहुत ही भावुक पोस्ट अनुराग जी
जहाँ भी अब आपके पिता जी होंगे
आपकी सफलता देखकर जरूर खुश होंगे
जीजाजी...स्तुति! सिया की रूम मेट :) नॉएडा वाला घर.
its really touching Anuraag...i can really feel d pain..!!
इस पोस्ट ने रुला दिया..... बिलकुल ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ है.... मेरी माँ भी बचपन में चली गयीं थीं..... और मैं मेरी बहन जो मुझसे छोटी है.... उससे पूछा करता था कि मम्मी नहीं आयेंगीं अब? पता है.... आपको.... मैं अभी भी बहुत रोता हूँ.... अपनी माँ के लिए.... कभी कभी तो इतने ज़ोर से.... कि मेरे आस-पास के लोग चले आते हैं कि क्या बात हो गई.... मुझे भी अपनी माँ कि ज़रूरत पग पग पर होती है.... मेरी कई सारी गर्ल-फ्रेंड्स इसलिए नाराज़ हो गयीं.... क्यूंकि मैं उनमें अपनी माँ को खोजा करता था.... और कई बार प्यार से तोतला के उनको मम्मा बुलाता था.....और हर बात में अपनी माँ का ही कम्पैरीज़न करता था..... मुझे पिता जी ज़रूरत कभी नहीं हुई.... पर माँ की ज़रूरत शायद ज़िन्दगी भर महसूस करूँगा.... मेरे कई सारे रजिस्टर सिर्फ माँ को याद करते हुए भरे पड़े हैं..... आज आपने (आपकी इस पोस्ट ने) रुला दिया.... इस वक़्त भी आंसू बह रहे हैं..... काश! कोई मेरी माँ ला दे.... मैं जीना चाहता हूँ..... फिर से अपना बचपन.....
मैं भी के. वी. का ही पढ़ा हूँ.....
भावुक कर दिया इस संस्मरण ने, आखें नम हो आई, अनुराग.
बहुत अच्छी प्रस्तुति....
बहुत अच्छा लेखन... एक ही सांस में बिना ब्रेक के पूरा पढ गया. :)
wastav me behad bhavook post hai....
'दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ........' क्यों ऐसा होता है लोगों के साथ.. क्यों
आँखों के कारण अक्षर धुंधले हो रहे हैं। सच में जीवन में क्या-क्या नहीं देखा होता है? पता नहीं किन-किन वस्तुओं से हम अपने आपको दिलासा देते रहते हैं। बहुत ही सार्थक पोस्ट।
कुछ स्थान ऐसे भी है जहाँ किसी भी वहां की पहुँच नहीं है ...
मार्मिक और दिल को छूने वाला संस्मरण ...
दिल को छू लेने वाले मार्मिक जज्बात .
कुछ पढ़ने के बाद आज दूसरी बार रोया हूं। पहली बार 'गुनाहों का देवता' पढ़ने पर आंसुओं को नहीं रोक पाया था और आज...
bhavuk kar diya aapkee is post ne...
ऐंसी ही कहानी मेरे पापा अपने बचपन की सुनाते है जब वो ५ साल के थे. और उनकी बहन(मेरी बुआ) २ साल की, तब मेरे दादा जी चल बसे. तब मेरी दादी ने अपने बच्चो को बिना किसी के मदद से स्वाभिमान से पढाया लिखाया. सच में कमेन्ट लिखते हुए भी आंसू आ रहे है.
Very इमोश्नल post
दिल को छू लेने वाले मार्मिक जज्बात .
इस पोस्ट के ज़रिए मुझसे भावनात्मक रूप से जुड़ने के लिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद...!
ओह ! निशब्द
बहुत भावुक कर देने वाला संस्मरण....सच बहुत इमोशनल अत्याचार हुआ .
दिल को छू लेने वाले मार्मिक जज्बात .
touching
रुला दिया मित्र आपने. अबोध बचपन क्या जाने जन्म मरण का गूढ़ दर्शन ! पापा का रिक्त स्थान कभी पूरा नहीं हो पाता . आज फिर रोई होगी आपकी छोटी बहन .
करूण!!
मर्म भेद देता संस्मरण !!
माता पिता से तब बिछडना,जब उनकी आवश्यकता
सर्वाधिक होती है!!वह पूर्ति कभी न होगी!
प्रतिकूलताओ में भी सफ़लता की बधाई।
संवेदनाओं को झंकृत करती संस्मरणात्मक पोस्ट
lagta hai bhagwan ne ek si kismat banayi hai hamari... kismat khone mein... jab mere papa gaye the bhagwan ji k pass, tab mai bhi 2nd std mein thi, mera bada bhai 5th mein.parivar mein (dada dadi k)kuch bani nahi.. hum bhi nagpur se khargone aa gaye (nana nani k pass).. mom ne .. jo kabhi shadi k baad bhi ghar se bahar nahi gayi.. naukri ki.. humko ache se padhane k liye.. bahut mehnat ki.. school mein teacher hai, aajkal bahut jor shor se blogging karti hai (archanachaoji.blogspot.com), shukr hai nana nani k parivr ka hamesha saath raha.. aaj mai indore mein hu.. (job hunt) aur bhai noida mein web designer hai (meraangle.blogspot.com).. zindagi chalti rehti hai... jo kho gaya uska ghum nahi manana chahiye.. kyuki wo kabhi laut k nahi ayega.. par jo hai use hamesha sahej kar rakhna chahiye...
बहुत ही शानदार लिखा है आपने। एक अच्छी फिल्म के फ्लैशबेक में चला गया था मैं। आपको बधाई।
अभी -अभी एक कविता पढी......बस वही बताना चाहती हूँ........देखियेगा जरूर...."पिता के बाद"
http://blogmridulaspoem.blogspot.com/
...आप सभी का कोटि-कोटि धन्यवाद!
@Yaadein ji- आपकी माता जी और भाई का ब्लॉग देखा... अच्छा लगा। माताजी ने एक अच्छी कविता भी पढ़ाई।
@अर्चना जी, कविता के लिंक के लिए धन्यवाद!
मार्मिक पोस्ट! एक बात है, ऐसे में एक भाई या बहन का होना कितना महत्वपूर्ण होता होगा। क्योंकि केवल वही आपके दुख को महसूस कर सकता /सकती है।
घुघूती बासूती
अनुरागजी, मैंने भी पापा को बहुत कम उम्र में खो दिया पर आज भी मै महसूस कर सकती हू जब उनकी उँगली पकड़ के पहली बार स्कूल की पहली सीढ़ी चढ़ी थी ...कितना सुरक्षित अहसास था वो ? परीक्षा में प्रथम स्थान आने पर उनके चेहरे की गर्व भरी चमक, थोड़ी सी डाट और दुनिया भर का लाड...बहुत पीछे छुट गया सब..उनके जाने के बाद दुनिया ही बदल गयी l सारी दोस्त अपने अपने पापा की बहुत सारी बाते शेयर करती थी पर मै...चुपचाप खड़ी सुनती रहती थी, मेरे पास मेरे पापा के लिए कुछ भी बोलने को होता ही नहीं था l जिम्मेदारी ,संघर्ष, नोकरी ..मेरी पहली तनख्वाह ...सच बहुत मिस किया उन्हें..मेरी पहली कमाई और वो ही नहीं थे साथ ...l मै आज भी कई बार भावुकता में पूछ लिया करती हू कि बता ..मेरे ही पापा क्यों नहीं है ? इसका जवाब तो ईश्वर के पास भी नहीं ...कहते है ना कि अच्छे लोगो को इश्वर भी अपने पास जल्दी बुला लेता है इसीलिए शायद ...? अब तो बस यादें मन में सँजोए जिंदगी में हर कदम आगे बढते जा रहे है ..साथ है तो बस उनका आशीर्वाद.. हमेशा हर पल हमारे साथ ...... l
Ap ka lekh dil ko choo gaya
adbhud !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
सर जी मैं मोहक शर्मा.जो आपसे रोज बाते करता हू फसबूक पर. जो आपसे आपके सफरनामे के बारे में जानना चाहता हू.
सर मैं बिलकुल निशब्द हू.मेरी आँखों से आंसू रुक नही पा रहे है. क्या कहू ये सब कुछ पढ़ के बहुत कुछ कहना चाहता हू.लेकिन निशब्द हू.आप महान है. आप गुरु है मेरे. भगववान है आप मेरे. सच में सर रुला दिया मुझे इस घटना ने.आप को भगवान जी हमेशा खुश रखे.
अनुराग जी आपका ये पोस्ट वाकई दिल को छु गया.....क्या कहूँ कुछ समझ में ही नही आ रहा....या फिर मेरे पास इतने शब्द ही नही है जो इस बारे में कुछ कहूँ..बस इतना कहूँगी बेहद मार्मिक और दिल को छू लेने वाला एक सार्थक पोस्ट ....
Emotional Atyachar to kiya usne Bhai per ye bhi hai ki usne(Aero Plane) Hamari papa se milne ki umeed banaye rakhi......nahi to bachcho ka dil tut jata.......��
Umeed se bhi bahut taqut milti hai....
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