टीवी पर दिखाई जा रही बाढ़ सचमुच की बाढ़ से ज़्यादा ख़ौफ़नाक होती है। हम बाढ़ को डिफ़रेंट-डिफ़रेंट एंगल से दिखाते हैं। पूरे वैरिएशन के साथ दिखाते हैं। फिर भी ना जाने क्यूं लोग स्पॉट पर ही चले आते हैं तमाशा देखने। बाढ़ का लाइव कवरेज कर रहा “बाल की खाल” चैनल का रिपोर्टर बकलोल कुमार परेशान हो उठा है। यार, ये लोग यहां मजमा क्यूं लगाते हैं? यहां कोई ड्रामा तो चल नहीं रहा। अरे एक तो हम अपनी जान जोखिम में डालकर नदी के पानी में कमर तक उतर कर ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि इस बाढ़ ने किसकदर लोगों का जीना मुहाल किया हुआ है, और ये तमाशबीन हैं कि हमारा ही जीना मुहाल किए दे रहे हैं।
पानी में कमर तक डूबा रिपोर्टर दमफुलाऊ इस्टाइल में नदी का घटता-बढ़ता जलस्तर बता रहा है। ‘आप देख सकते हैं कि पिछले दो घंटे से में यहीं खड़ा हुआ हूं और दो घंटे पहले जो पानी मेरी बेल्ट से नीचे बह रहा था वो अब मेरी बेल्ट से ऊपर बह रहा है। इससे आप ख़ुद ही अंदाज़ा लगा सकते हैं कि नदी का जलस्तर किस तेज़ी के साथ बढ़ रहा है।’ रिपोर्टर का एलान सुनकर तमाशबीन परेशान हैं। वो तो ठीक है कि नदी का जलस्तर बढ़ रहा है, लेकिन बाढ़ कित्थै है भाई? हम तो टीवी पर बाढ़ देखकर बाढ़ को ढूंढते हुए यहां तक आ पंहुचे हैं।
ब्रेक के दौरान और गहरे पानी में उतरता हुआ रिपोर्टर झल्ला उठा है। अरे अंधे हो क्या सब के सब, देखते नहीं नदी में बाढ़ आई है। नदी पगलाई हुई है। नदी का पानी लोगों के घरों में घुस रहा है। लोग फिर अचंभित हैं। किसके घर में घुस रहा है भाई पानी ? पानी घरों में कहां घुस रहा है, बल्कि लोग ही तो अपना घर लेकर पानी में घुस गए थे। ये बात और है कि तब नदी सूखी पड़ी थी। और रही बात इलाके में पानी घुसने की तो नदी को दोष क्या देना। अभी तो पिछली बरसात का जमा पानी ही मोहल्ले से नहीं निकल पाया है। रिपोर्टर सबको शत्रुघन सिन्हा स्टाइल में ‘ख़ामोश’ करा देता है। वो ब्रेक से वापस लौट रहा है।
‘जैसा कि आप देख सकते हैं, बाढ़ का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। पानी मेरी पसलियों को छू चुका है। ख़तरे के निशान से अब बहुत ऊपर बह रहा है पानी।’ लोग रिपोर्टर की बदहवासी से किनारे पर खड़े-खड़े कांप रहे हैं। रिपोर्टर ‘भागो पानी आया’ की चेतावनी जारी कर रहा है। लोग कंफ़्यूज़िया रहे हैं कि पानी शहर में घुस रहा है या रिपोर्टर पानी में। शहर में बाढ़ लोग पहले भी देख चुके हैं, लेकिन नदी में बाढ़ का ये नज़ारा उनके लिए बिलकुल नया है। शहर के लोग अपना शहर नदी में डूबा देखने की उत्सुकता में नदी के मुहाने तक खिंचे चले आए हैं। लोग नहा-धोकर पूरी तैयारी के साथ बाढ़ देखने आए हैं। गोया, बाढ़ नहीं मेला देखने आए हों। सफ़ेद कुर्ता-पायजामा, रंगीन पैंट-शर्ट, क्रीम, पाउडर और लिपस्टिक की भरपूर वैराइटी देखने को मिल रही है।
रिपोर्टर उफ़नती नदी को आपदा बता रहा है लेकिन नदी का सैलाब पिछले चार दिनों से वरदान साबित हो रहा है। विश्वास ना आए तो भुट्टे वाले चचा, चाट-पकौड़ी वाले बंटी, पान-बीड़ी-सिगरेट वाले राजू और बर्फ़ के गोले वाले घीसू से पूछिए। ये लोग पहले दिन औरों की तरह ही बाढ़ का प्रकोप देखने आए थे। समझदार थे, दूसरे दिन से अपना खोमचा लेकर आने लगे। इनके लिए प्रकोप, स्कोप में बदल गया। इतनी बिक्री हो रही है कि हाथ-पांव फूले हुए हैं।
हाथ-पांव तो ख़ैर रिपोर्टर के भी फूले हैं। रिपोर्टर दर्शकों को नदी में डूबा शहर दिखा रहा है और लोग नदी में डूबा रिपोर्टर इंज्वॉय कर रहे हैं। रिपोर्टर किसी जान जोखिम ख़तरा निशान वाली जगह खड़े होकर डूबते लड़खड़ाते हुए, दर्शकों को ये बताना चाहता है कि शहर के लोग कितनी मुसीबत में हैं और किनारे पर सौ-सौ रुपए घंटे पर दो गोताख़ोर सिर्फ़ इसलिए तैनात हैं कि रिपोर्टर अगर स्टंट करते-करते कहीं ख़ुद मुसीबत में फंस जाए तो गोता खा चुके रिपोर्टर की गोता मार कर जान बचाई जा सके। ये देखिए- ‘ये भी डूब गया, वो भी डूब गया, ये भी तबाह, वो भी तबाह।’ रिपोर्टर इस तथातथित बाढ़ में सब कुछ डुबा देने पर आमादा है। और किनारे पर खड़े लोग अपने मोबाइल से बाढ़ की बजाए रिपोर्टर की तस्वीरें उतार रहे हैं। उनके लिए रिपोर्टर, बाढ़ से ज़्यादा बड़ा अजूबा है।
दूसरे ब्रेक में रिपोर्टर नदी में और अंदर उतरने की कोशिश करता है। तभी भीड़ में से कोई फ़िकरा कसता है, ‘आगे मत जाना जनाब, कुतुब मीनार से पैर उलझ जाएगा।’ भीड़ सम्वेत स्वर में अट्ठाहस कर उठती है। फिकरों का मिज़ाज बदलता जा रहा है लेकिन रिपोर्टर का अंदाज़ नहीं बदलता। वो बाढ़ पर ताज़ा अपडेट देकर ब्रेक ले लेता है- ‘बाल की खाल चैनल पर जारी है बाढ़ का ये कवरेज बिलकुल Live’
(आज 'नवभारत टाइम्स' में प्रकाशित)
18 comments:
ha ha ha ha
क्या बात है अनुराग भाई। आप अपनों की ही पोल खोल रहे हैं। दिल्ली को डुबोने का इरादा था इस बार लेकिन डूब ही नही पायी। बारिश हमेशा हमारे लिए अमृत की बूंद होती है लेकिन यह तो अब आसमानी आफत बन गयी है। ये रिपोर्टर क्या दूसरे ग्रह से आते हैं?
हा हा हा ....1 बात मै भी बताऊ अनुरागजी .. जब टीवी पे कोई बाढ़ लाइव कवरेज दिखाते है तो मेरी मदर वो सब देख... केमरे के कमाल से अनजान होकर हमें हिदायते देने लगती है कि पानी से दूर रहना चाहिए ,देखो कैसी बाढ़ आ गयी वगेरह वगेरह ....l आपने लाइव बाढ़ कवरेज़ की जो सही हकीकत बताई ,अब सबसे पहले उन्हें ही पढ़ाउंगी ताकि वो भी 'सच' से अवगत हो सके l वैसे मै ये भी सोच रही हूँ अनुजी कि जिन रिपोर्टरों ने यमुना नदी के रीडिंग मीटर से भी बहुत उपर खड़े हो के बाढ़ लाइव कवर किया, जिनको पानी छू भी नहीं सका ...उनका बाढ़ लाइव कवरेज़ कैसा होगा ? शायद सिर्फ शब्दों का खेल ....'इमोशनल अत्याचार' ?
काहे भईया .....कोनो नाराज़गी है का ?? काहे लंगोट खोल रहे हो अपने भाइयो की !?
सुबह ही नव भारत टाइम्स में ये व्यंग माफ़ कीजियेगा सचाई पढ़ लिया था पर इस बात पर शक हो रहा था की ये स्टार वाले ही अनुराग मुस्कान है या कोई और क्योकि सबसे अच्छी बाढ़ की रिपोर्टिंग का दावा करने वाले चैनल का कोई ये लिखेगा विश्वास नहीं हो रहा था | चलिए मान गये जी आप को अब ये बताइये की आप को ये लिखने के कारण अपने सहयोगियों से क्या क्या सुनना पड़ा |
अंशुमाला जी... हमारे चैनल ने ना केवल बाढ़ की अच्छी, बल्कि सच्ची रिपोर्टिंग भी पेश की। हमारा चैनल ख़बर को ख़बर की तरह ही दर्शकों तक पहुंचाता है। लेकिन कुछ लोग 'बाल की खाल' चैनल के रिपोर्टर जैसा ही काम करते हैं।
ये व्यंग्य उन्हे समर्पित है।
अनुराग जी
जब पहली बार रिंग रोड पर पानी आने की खबर आपके चैनल पर मैंने देखा तो चिंतित हो कर अपने छोटे भाई बहन को दिल्ली फोन कर दिया पर उन्होंने मुझे मजाक का पात्र बना दिया कहने लगे जरा टीवी कम देख करो यमुना में पानी बढ़ गया है पर बाढ़ नहीं आई है | अब आप ही बताइए की किसकी बात सच मानु | वैसे आप भी अपने व्यंग में यही बात कह रहे है
@पानी घरों में कहां घुस रहा है, बल्कि लोग ही तो अपना घर लेकर पानी में घुस गए थे। ये बात और है कि तब नदी सूखी पड़ी थी। और रही बात इलाके में पानी घुसने की तो नदी को दोष क्या देना।
@लोग कंफ़्यूज़िया रहे हैं कि पानी शहर में घुस रहा है या रिपोर्टर पानी में।
आप के चैनल ने भी यमुना का पानी काफी बढ़ गया है कि जगह बाढ़ आ गई है कहा था , खैर जाने दीजिये खबर चैनल की थी और ये व्यंग आप का है मजेदार है और पढ़ कर अच्छा लगा |
बढ़िया व्यंग .. हमको भी घर से सौ हिदायतें मिल गई दिल्ली में बाढ़ है ...
डूब गई दिल्ली ,होगया जल प्रलय ,यमुना का कहर
बेहतरीन व्यंग है अनुराग भाई... ज़बरदस्त कवरेज :-)
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
तभी भीड़ में से कोई फ़िकरा कसता है, ‘आगे मत जाना जनाब, कुतुब मीनार से पैर उलझ जाएगा।’ भीड़ समवेत स्वर में अट्ठाहस कर उठती है।
हा हा हा हा हा । जबरदस्त पोस्ट ।
व्यंग्यकार को अपने प्रति भी निर्दयी होना चाहिए। लेकिन अंशुमाला जी के सवालों का जवाब देते हुए अनुराग की ईमानदारी गायब हो गई। उन्हें नौकरी की चिंता हो गई। अनुराग भाई अगर ऐसा ही है तो कम से कम अपने पेशे पर व्यंग्य ना करो ताकि फंसने की गुंजाइश ना रहे। कौन नहीं जानता स्टार न्यूज ने बाढ़ पर सनसनी फैलाने में कोई कसर नहीं बाकी रखी। अनुराग भाई, अंशुमाला जी ने आपकी सफाई पर जो लिखा है उसके जवाब का इंतजार है।
तारकेश्वर जी... अशुंमाला जी ने सवाल के साथ ख़ुद जवाब भी दिया है कि 'खबर चैनल की थी और ये व्यंग आप का है '
आपके लिए मेरी सलाह है कि जो आपको बुरा लग रहा है उसे जबरन मत देखिए... आपको व्यक्तिगत पीड़ा के दौर से गुज़रते हुए क्षुब्ध नहीं होना पड़ेगा...।
रही बात मेरी ईमानदारी की तो मैं अपने पेशे और लेखनी दोनों के प्रति बराबर का ईमानदार हूं। और रहूंगा। आप अपनी सुनाएं... कैसे हैं आप...। :)
पहला बयान- हमारे चैनल ने ना केवल बाढ़ की अच्छी, बल्कि सच्ची रिपोर्टिंग भी पेश की। हमारा चैनल ख़बर को ख़बर की तरह ही दर्शकों तक पहुंचाता है।
दूसरा बयान- अशुंमाला जी ने सवाल के साथ ख़ुद जवाब भी दिया है कि 'खबर चैनल की थी और ये व्यंग आप का है।
संभावित निष्कर्ष *- जिस खबर को आप स्टूडियो में पढ़ते हैं उसका आपका कोई वास्ता नहीं। उसके प्रति आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं।
* संभावित निष्कर्ष इसलिए कहा क्योंकि आप जैसे पत्रकार समझते हैं कि नतीजा निकालने का अधिकार सिर्फ आप पत्रकारों का है। तभी तो आप बड़े तैश में कहते हैं- आपके लिए मेरी सलाह है कि जो आपको बुरा लग रहा है उसे जबरन मत देखिए... आपको व्यक्तिगत पीड़ा के दौर से गुज़रते हुए क्षुब्ध नहीं होना पड़ेगा।
शुक्रिया। आपने मन की बात कह दी।
माननीय तारकेशश्वर जी,
सही कहा आपने, ख़बरों के प्रति ज़िम्मदारी किसी एक की नहीं हो सकती। हां, ख़बर ज़िम्मेदारी से दर्शकों तक पहुंचाने में मैं कभी कंजूसी नहीं करता।
तैश में आना मेरी फितरत नहीं है, बयानबाज़ी मैं करता नहीं और ना ही मेरी प्रतिक्रियाएं अवसाद से जन्म लेती हैं। अंततः आप सही है कि मैं 'मन की बात' कहता हूं।
बातों-बातों में आप अपनी सुनाना भूल गए... हाहाहा
आपने तो अपने ही रिपोर्टर भाइयो का मजाक उड़ा दिया लेकिन जो मजा खुद पर हंसने मे है वो दूसरो पर हंसने मे कहां...बढिया
उज्ज्वल त्रिवेदी
apne to baad ki khaal hi nikaal di
bahut badiya post rahi
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