बड़ा कंफ्यूज़न है भई, समझ नहीं
आ रहा कि किरपा पहले आएगी या किस्मत पहले चमकेगी, किस्मत पहले चमकेगी या फिर किरपा
पहलेगी बरसेगी? मामला, पहले अंडा या पहले मुर्गी टाइप्स फंसा हुआ है। मंहगाई-मंहगाई
करके गरीब नाहक ही विलाप कर रहा है। विदर्भ के मूर्ख किसानों को समझ लेना चाहिए अब
कि किरपा फांसी लगाकर झूल जाने में नहीं बल्कि समोसे और उसकी हरी चटनी में है। भगवान
जी थोड़े परपीड़न कामुक निकले, इंसान तो बनाया लेकिन निरा सुख-दुख का पुतला। किन्तु
धन्य हैं वो भगवान के अवतार जिनके उपायों से दर्द और परेशानी से कराह रहे इंसान की
टेंशन गई पेंशन लेने।
मैं तो कहता हूं भगवान लोगों ने
भगवान होने में बेकार की अपना टाइम वेस्ट किया। भगवान लोगों से ज्यादा चौकस खोमचा
तो उनके अवतार लोगों ने लगा लिया है। ऊपर भगवान भी हैरान हैं, यार इतने ठाठ तो
भगवान होकर मेरे भी कभी नहीं थे जितने मेरे नाम की चिटफंड कंपनी चलाने वालों के
हैं। भगवान भगवान ही रह गए और अवतार तारनहार हो लिए। भगवान के मंदिरों के कपाट तो रात-बिरात
बंद हो जाते हैं लेकिन अवतार लोगों की दुकान ट्विंटी फोर इनटू सैवन चल रही है। अवतार
लोगों के मुनाफे से अब भगवान भी जैलस फील करने लगे हैं और अपने अवतारों पर खुन्नस
निकाल रहे हैं। नतीजा ये कि किरपा बरसाने वाले खुद किरपा को तरस रहे हैं। लेकिन
भगवान भोले हैं, इतना भी नहीं जानते कि किरपा के झोलाछापों ने तगड़ी सेटिंग कर रखी
है। मामला देर-सवेर सैटल हो ही जाएगा। किरपा फिर आने लगेगी। भक्त हैं ना।
दरअसल इंसानों का ज्यादा पढ़-लिख
गया तबका भी बड़ा हठधर्मी है। चमत्कार को नमस्कार करने में अपनी इंसल्ट समझता है
और अपने दुख से ज्यादा दुखी वो पड़ोसी पर होने वाली किरपा से है। अरे भाई, अब तो
मान ले कि मंदिरों में मत्था पटकने और नाक रगड़ने से किरपा नहीं आती। मंदिरों में
भगवान होंगे तो किरपा आएगी ना। भगवान ने तो अपनी शक्तियों की ठेकेदारी अपने
अवतारों को दे दी है। मूर्ख मानव, तुझ पर आने वाली किरपा की हर दलाल स्ट्रीट पर एक
चमत्कारी बाबा बैठा हुआ है। उस बाबा के समागम में जाकर अपने समस्त गम डाइलियूट कर।
यही मायावी बाबा किरपा से तेरा किस्तम कनेक्शन जोड़ेगा। शक्ल और अक्ल पे मत जा, बस
मान ले कि बाबा चमत्कारी है। जो ये चमत्कारी ना होता तो तेरी मूर्धन्य मानव
प्रजाति का सपरिवार अपने समक्ष मजमा कैसे लगा पाता।
(24-04-2012 को अमर उजाला में प्रकाशित)
2 comments:
व्यंग्य के माध्यम से अपनी बात कहना भी कला है , बधाई
देर आए दुरस्त आए। तगडा व्यंग्य है।
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