यह फ़ोटो विख्यात फ़ोटोग्राफर कैल्विन कार्टर ने खींचा है। इसके लिए उन्हे वर्ष 1994 में फ़ीचर फ़ोटोग्राफी के लिए पुल्तिज़र अवार्ड भी मिल चुका है। इस फ़ोटो में दिखाया गया है कि भूख से व्याकुल एक अबोध बच्ची रैस्क्यू कैम्प तक पहुंचने से पहले ही बेहोश हो गई है, और एक गिद्ध उसके पास आकर बैठ गया है। फोटोग्राफर कैल्विन इस बच्ची की मदद भी करना चाहते थे लेकिन उनके दोस्तों ने उन्हे बच्ची से होने वाली खतरनाक बीमारी के संक्रमण की आशंका के चलते रोक दिया। क्या इस बच्ची को गिद्ध ने अपना ग्रास बना लिया होगा? और क्यों वो अपने दोस्तों की बातों में आकर इस बच्ची की मदद नहीं कर सके? इस फ़ोटो को खींचने के बाद इन्ही सवालों से परेशान कैल्विन इतने अवसाद में घिर गए कि उन्होने इस फ़ोटो को लेने के मात्र तीन महीने बाद आत्महत्या कर ली। क्या यह तस्वीर और इसे लेने वाले कैल्विन मानवीय संवेदनाओं के पुनर्जागरण को लेकर एक सार्थक बहस का विषय नहीं हैं....?
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Wednesday, April 18, 2007
इस फ़ोटोग्राफ़ ने मुझे हिलाकर रख दिया, आप भी देखिए...
इस फ़ोटोग्राफ़ ने मुझे हिलाकर रख दिया...
यह फ़ोटो विख्यात फ़ोटोग्राफर कैल्विन कार्टर ने खींचा है। इसके लिए उन्हे वर्ष 1994 में फ़ीचर फ़ोटोग्राफी के लिए पुल्तिज़र अवार्ड भी मिल चुका है। इस फ़ोटो में दिखाया गया है कि भूख से व्याकुल एक अबोध बच्ची रैस्क्यू कैम्प तक पहुंचने से पहले ही बेहोश हो गई है, और एक गिद्ध उसके पास आकर बैठ गया है। फोटोग्राफर कैल्विन इस बच्ची की मदद भी करना चाहते थे लेकिन उनके दोस्तों ने उन्हे बच्ची से होने वाली खतरनाक बीमारी के संक्रमण की आशंका के चलते रोक दिया। क्या इस बच्ची को गिद्ध ने अपना ग्रास बना लिया होगा? और क्यों वो अपने दोस्तों की बातों में आकर इस बच्ची की मदद नहीं कर सके? इस फ़ोटो को खींचने के बाद इन्ही सवालों से परेशान कैल्विन इतने अवसाद में घिर गए कि उन्होने इस फ़ोटो को लेने के मात्र तीन महीने बाद आत्महत्या कर ली। क्या यह तस्वीर और इसे लेने वाले कैल्विन मानवीय संवेदनाओं के पुनर्जागरण को लेकर एक सार्थक बहस का विषय नहीं हैं....?
यह फ़ोटो विख्यात फ़ोटोग्राफर कैल्विन कार्टर ने खींचा है। इसके लिए उन्हे वर्ष 1994 में फ़ीचर फ़ोटोग्राफी के लिए पुल्तिज़र अवार्ड भी मिल चुका है। इस फ़ोटो में दिखाया गया है कि भूख से व्याकुल एक अबोध बच्ची रैस्क्यू कैम्प तक पहुंचने से पहले ही बेहोश हो गई है, और एक गिद्ध उसके पास आकर बैठ गया है। फोटोग्राफर कैल्विन इस बच्ची की मदद भी करना चाहते थे लेकिन उनके दोस्तों ने उन्हे बच्ची से होने वाली खतरनाक बीमारी के संक्रमण की आशंका के चलते रोक दिया। क्या इस बच्ची को गिद्ध ने अपना ग्रास बना लिया होगा? और क्यों वो अपने दोस्तों की बातों में आकर इस बच्ची की मदद नहीं कर सके? इस फ़ोटो को खींचने के बाद इन्ही सवालों से परेशान कैल्विन इतने अवसाद में घिर गए कि उन्होने इस फ़ोटो को लेने के मात्र तीन महीने बाद आत्महत्या कर ली। क्या यह तस्वीर और इसे लेने वाले कैल्विन मानवीय संवेदनाओं के पुनर्जागरण को लेकर एक सार्थक बहस का विषय नहीं हैं....?
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15 comments:
सच में एक भयावह दृश्य
मानवीय संवेदनाओं के प्रति आपकी आस्था की कद्र करता हूं।
ये फोटो तो हर किसी के मन को झिंझोड़ कर रख देगी।
दिल को झकझोर देने वाला चित्र.
मुझे ये लगता है कि कैल्विन के दिल को पढ़ लेने का जो कुछ बाक़ी माद्दा रहा होगा वो सिर्फ़ उसीके पास रहा होगा, जैसे ख़ुद अनुराग ने बताया था कि उसने ये लिखकर आत्महत्या की थी कि वो इसलिए मर जाना चाहता है ताकि कम अज़ कम एक व्यक्ति के हिस्से का खाना बचाया जा सके। ये तीसरी दुनिया की दुरूह जीवन की हिला देने वाला एक चित्र का उपन्यास है, ये तस्वीर अगर हमारी पूँजीवादी व्यवस्था के स्वकेन्द्रित समाज का पेट ख़राब कर दे तो कैल्विन, अनुराग और मैं, तीनों माफ़ी चाहते हैं
वाकई में भयावह दृश्य है, लेकिन अफसोस इस बात का है कि ऐसे ही ना जाने कितने बच्चे वहाँ कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। ऐसी ही बहुत सारी तस्वीर एक बार शायद दिव्याभ ने दिखायीं थी।
सचमुच पड़ताल का विषय है कि उस लड़की का क्या हुआ । क्या गिद्ध खा गया ? कौन बताएगा ?
सचमुच दिल दहला देने वाली तस्वीर!
और अधिक जानकारी के लिये यह देखिये:
http://en.wikipedia.org/wiki/Kevin_Carter
मैं अब तक काँप रही हूँ ये फोटो देख कर...
बहुत भयानक और कड्वा पह्लु िज़ं्दगी का...
US BACHE KO AANKHO KE SAMNE MARTA DEKHKAR CHAN SE NAHI JI PAYE HONGE .ISILIYE SUCIDE KAR LIYA . YE BAAT MEDIA OR FILM VALE ITNI BAREEKI SE NAHI DIKHA PATE OR LOG JINDGI ME AAGE BADHNE KE LIYE BHI GALAT RASTO KA ISTEMAAL KARTE HE PAR AATMGLANI SHIKHAR PAR PAHUCHNE KE BAAD BHI MARNE KE LIYE MAJBOOR KAR DETE HE . INSAAN KI OKAT KO BATATA CHITRA .
भयंकर सत्य को देख कर रूह का कांपना अपने साथ भविष्य में होने वाले कारण का मुख्य रूप माना जाता है,यह हमारे साथ भी हो सकता है,और नही भी हो सकता है,एक हरकत हमारे मन में भी पैदा होती है,कि यह सब हम जब रोक नही सकते तो,फ़िर सोचने से क्या हासिल होगा,हर कोई अपने अपने लिये सोचता है,अपना है कौन यह किसी को भी पता होता तो यह चीत्कार पैदा करने वाला द्र्श्य ही उपस्थित नही होता,दिमाग में फ़ितूर भी भर जाता है,कि इस समझदार इन्सान रूपी जानवर का अन्त क्या अक्स्मात इसी तरह से हो जायेगा.इन्सान की अपने द्वारा हदबन्दी का नतीजा इसी रूप में मिलता है,कही राजनीतिक हदबन्दी है,कही धार्मिक हदबन्दी है,कही जाति की हदबन्दी है और कही पर कार्य की हदबन्दी है,अपनी अपनी हदबन्दी के लिये लोग अपना वास्तविक रूप भूल कर एक जानवर जैसी हदबन्दी की पहिचान बनाने के लिये मशूगल है,यह होता भी इसी लिये है कि हम सब जानवरो का अंश खाकर जानवर ही होते जा रहे है,जानवर का दूध बच्चे को जन्म के बाद देने से रूप तो इन्सान का रहता है,सभी प्राथमिक तत्व जानवर के पनपने लगते है,फ़िर जानवर का मांस का सेवन और अन्य अंगों का इस्तेमाल करने के बाद उनके तत्वों को शरीर में दवाइयों आदि के द्वारा भी प्रवेश करवाते रहते है,जो कि एक जानवरी दिमाग के अलावा और दे भी क्या सकते है,एक ही सिद्धान्त आदमी के पास रह गया है,खाना पीना चोदना,दुनिया में तीन तत्व,एक दिन मर जाओगे धरि लोडा पर हत्थ।
उत्तरी औए दक्षिणी ध्रुव दोनो बर्फ़ के रूप में जमे खडे है,इन्सान बारूद का इस्तेमाल कर रहा है,गरमी बढ रही है,गैसों के प्रयोग से ओजोन पर्त टूट रही है,सूर्य की पराबैंगनी किरणें प्रुथ्वी पर प्रवेश करती जा रही है,और एक दिन दोनो ध्रुव पिघलने लगेंगे,जमीन पानी से घिरने लगेगी,और तब जो यह हमारा तुम्हारा और जमीनी हदबन्दी की जा रही है,सब धरी रह जायेगी,संसार का विनास,और इसी तरह से प्रकृति के साथ किया जाने वाला अन्याय एक दिन संसार का नाश करने के लिये प्रमुख माना जायेगा,संभल जाओ,जिसे अपना कह रहे हो,वह कभी तुम्हारा नही था,जो भी सामने है उसे प्रेम से गले लगा कर अपना कहना शुरु कर दो,सभी इन्सान बराबर है,सभी का हक जमीन पर रहने का है,मेरा तेना और पागल-बुद्धिमान का स्वांग मत रचो,सभी अन्दर ईशवर ने बराबर का अंश प्रदान किया है,अपनी सांसों को पूरा करने के बाद जाना तो सभी को है,भगवान दो जगह ही हंसता है,एक जब दो लोग जमीन की हदबन्दी करते है,यह तेरी और और यह मेरी जिसे अरबों साल से कोई अपना नही बना सका है,वह मेरी और तेरी बन कैसे सकती है,कल का प्लान बना लेते हो,रात बाकी है,सांस कब और कितने समय बन्द हो जाये,कोई भरोसा नही है,फ़िर यह सब क्या हो रहा है,कुछ समय के लिये सोचो तो,एक दूसरे को बताओ,शायद किसी की समझ में आजाये!
दिल को दहला देने वाला द्र्श्य
It is sad, very sad indeed & makes one realise a lot of things that take place around us !
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