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Tuesday, May 1, 2012

बैंक बैलेंस को छोड़िए, किरपा होए महान


     कुत्ते को रोटी खिलाते डरता हूं। कुत्ता रोटी खाकर दुम हिलाने की बजाए कहीं बदले में होने वाली किरपा का हवाला देकर किरपा की रॉयल्टी ना मांग बैठे। ये किरपा के महिमा मुंडन का, द डर्टी पिक्चर के सुपरहिट होने जैसा टाइम चल रहा है। किरपा का खेल क्रिकेट से ज़्यादा लोकप्रिय हो गया है आजकल। पहले टीवी देखने से आंखें खराब होने का डर सताता था लेकिन अब टीवी देखने से भी किरपा आती है। पहले पहल तो मैं समझा की किरपा कोई कन्या है जो मुझे हरी चटनी के साथ समोसा, भल्ला, आलू टिक्की और गोलगप्पे खाता देखकर जीभ लपलपाती हुई चली आएगी। बाद में पता चला कि इस किरपा की जीभ तो कन्या प्रजाति से भी ज्यादा चटपटालोलुप है। कन्या तो केवल जेब खाली कराती है लेकिन ये किरपा तो बैंक बैलेंस ही खाली करा देती है। और बेवफा ऐसी कि फिर भी आ जाए इसकी कोई गारंटी नहीं।

      मुझे पापी को क्या पता था कि किरपा सिर्फ बाबाओं के अकाउंट में नोट डालने से ही आती है। मैं ठहरा मुरख, किरपा का शॉर्टकट बताने वाले बाबाओं को आजतक ढ़ोंगी ही समझता रहा। मैं नादान किरपा के लिए अपने कर्म पर ही अंधविश्वास करता रहा। जैसे आजकल पहुंचे हुए बाबा और स्वामी बनने के लिए सिद्धि और कुंडलीनि जागरण की आवश्यकता नहीं है ठीक वैसे ही किरपा लाने के लिए न आपको कोई प्रयास करना है, न कर्म और कर्तव्य का निर्वाह। बस हाथ पर हाथ रखकर किसी बाबा को फॉलो करना है। अजी फेसबुक पर बाबा का पेज लाइक करने मात्र से किरपा की गारंटी है।

      मैं अज्ञानी इतना तो समझ गया कि किरपा की बौछार में रेन डांस करने के लिए बाबा के बताए ब्रांडेड कपड़े पहनने, हवाईजाहज में घूमने और मंहगा मोबाइल रखने जैसे उपाय जरूरी है, लेकिन किरपा के लिए इन अनूठे उपायों को अमल में लाने के लिए कौन सी बैंक का एटीएम लूटूं या फिर कहां डकैती डालूं ये कौन बताएगा?  अरे, ये उपाय करने लायक ही होता तो किरपा की ज़रूरत क्या थी।

(आज 01-05-2012 को हिन्दुस्तान में प्रकाशित)

3 comments:

Shah Nawaz said...

वाह! व्यंग्य की धार ज़बरदस्त है अनुराग भाई....

bhagat said...

sahi kaha

अजित गुप्ता का कोना said...

कृपा का कमाल चल रहा है देश में।