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Wednesday, October 11, 2017

।।अथ: श्री बच्चन चालीसा।।

मैं बचपन से ही अमिताभ बच्चन जी का बहुत बड़ा फ़ैन रहा हूं. लेकिन ये बात सन् २००१ की है. तब अमिताभ बच्चन कौन बनेगा करोड़पति से अपनी एक और धमाकेदार पारी की शुरुआत कर चुके थे. तभी कोलकाता में अमिताभ बच्चन फैंस एसोसिएशन ने बारासत में उनका एक मंदिर बनवाया था जो बहुत चर्चित हुआ था. मैं भी इस ख़बर से ऐसा अभिभूत हुअा की मैंने उनकी आराधना के लिए चालीसा लिख डाली. लिखे जाने से लेकर आज तक ये मेरे ही पास सीमित रही क्यूंकि तब इसे लिखने से आगे बढ़ाने का कोई माध्यम मुझे नहीं सूझा था. आज इसे बहुत पुरानी और धूल जमीं फ़ाइल से निकाला और फिर से टाइप किया है. बच्चन साहब चूकिं अक्सर कहते हैं कि उन्हे भगवान ना बनाया जाए बल्कि इंसान ही रहने दिया जाए इसलिए दंडवत क्षमा के साथ आज उनके पिचहत्तरवें जन्मदिन के अवसर पर ये चालीसा उन्हे समर्पित कर रहा हूं। 

।।अथ: श्री बच्चन चालीसा।।

।।दोहा।।
जय तेजी हरवंश पुत्र तुम, ईश्वर के वरदान।
जय जया अभिषेक सुवन तुम, बने देश की शान।।

।।चौपाई।।

जय जयाजी पति दीन दयाला।
करत सदा हो काज निराला।।
वस्त्र केश दाढ़ी अति सोहे।
नर-नारी छवि देखत मोहे।।
संस्कार व्यक्तित्व निखारा।
अमर रहे तेजी का दुलारा।।
किया संषर्घ और तप जब भारी।
तब कहीं जाकर आई बारी।।
अभिनय महं तुम सम कोउ नाहीं। 
जग सब स्तुति करत सदा ही।।
ब्रम्हा, विष्णु और महेशा।
देत रहे आशीष हमेशा।।
मनभावन मनमोहक काया।
तिस पर वाणी ओज की माया।।
विजयी भए तुम भए अपराजित।
अटल मृत्यु को करके पराजित।।
नवयुग के तुम जैसे शंकर।
सत्य तुम्ही हो तुम ही सुंदर।।
तुम धारक गरिमामय छवि के।
सौम्य चंद्र सम तेज रवि के।।
तुम अभिरति अनुराग समाना।
हो अमिताभ सबहिं जग जाना।।
सम्मोहक मुस्कान है लागत।
दरस नैन की प्यास बुझावत।।
आभूषित तुम अंलकार हो।
जग जननी के तुम श्रृंगार हो।।
तुम निश्चित अक्षत अवतारा।
देख चकित भए सब संसारा।।
नेम धरम के तुम हो प्रचारक।
तुम चिंतक तुम भद्र विचारक।।
तुम्हरे वचन ज्ञान की गंगा।
मन प्रसन्न सुन हो सुर चंगा।।
धन्य जनम और करम की भूमि।
ख्याति देख सब ऋतुएं झूमीं।।
आदर जन, गण, मन का करते।
काज समर्पण प्रति के मरते।।
तुम प्रतिनिधि उत्सव संस्कृति के।
आध्यात्मिक सृष्टि की कृति के।।
तुम आदर्शों के प्रति पालक।
माता-पिता धन्य के बालक।।
तुम को देख कला के साधक।
भए आतुर बनने आराधक।।
दिव्य स्वप्न हर घर के तुम ही।
तुम्हरे गुण अब गावत सब ही।।
तुम नहीं तनिक कटु अभिमानी।
तुम निश्चल मन सब सम्मानी।।
तुम रहो अजर अमर सब वीरा।
दुख सम तम काटा धर धीरा।।
धरन धैर्य कोउ तुमसे सीखे।
तप का तेज नयन में दीखे।।
तुम अद्भुत अक्षत अचरज हो।
तुम अदितिज बच्चनकुल ध्वज हो।।
जय अनंत सम जय अविनाशी।
तुम घर घर में घट घट वासी।।
तुम संग मिलन की प्यास सतावे।
घुमत रहूं मोहे चैन ना आवे।।
बच्चन बच्चन नाथ पुकारो।
यही अवसर सबे आन दुलारो।।
लोकप्रिय हे चलचित्रहिं तारो।
संकट से व्सवसाय उबारो।।
यूं सब कोई बिरादर होई।
संकट से जूझत नहीं कोई।।
तब इक स्वामी आस तुम्हारी।
आय हरहू तब संकट भारी।।
धम निर्धन को देत सदा ही।
कौन बनेगा करोड़पति मा ही।।
आलोचक करे विनती तुम्हारी।
क्षमहुं नाथ कहें चूक हमारी।।
बच्चन हो तुम शान जगत की।
सुन दर्शन दो अरज भगत की।।
निर्देशक सब ध्यान लगावें।
निर्माता सब शीश नवावें।।
नमो नमो जय नमो हो बच्चन।
नायिका कहें और नायक जन।।
जो यह पाठ करे मन लाई।
ता पर करिए बच्चन सहाई।।
अब यह मांगे हम ईश्वर से।
तुमको जीवन अजर अमर दे।।
जय तेजी के लाला जय हो।
बच्चन की मधुशाला जय हो।।
अनुराग मुस्कान ये चाहे।
तुम सम्मुख ये पाठ सुनाए।।


।।दोहा।।
अभिनय कला साधक सभी, करें पाठ हो लाभ।
जीवन का आदर्श बने तुम, बने सार अमिताभ।।
रविवार चौबीस जून है, दो हज़ार सन् एक।
प्रेम सहित ये चालीसा, करूं चरणन में भेंट।।





Thursday, March 2, 2017

रिश्तों की सभी लाइनें व्यस्त हैं

रिश्तों की सभी लाइनें व्यस्त हैं
-अनुराग मुस्कान

ऑफिस में मेरे एक मित्र पास ही बैठकर मोबाइल पर कैंडी क्रश खेल रहे थे, तभी उनके फ़ोन की घंटी बजी और गेम में आए व्यवधान का गुस्सा उनके चेहरे पर उभर आया. फ़ोन रिसीव करके बोले अभी एक अरजेंट मीटिंग में हूं फ़्री होकर फ़ोन करता हूं. फ़ोन कटते ही फिर कैंडी क्रश खेलने लगे. मैंने पूछा किसका फ़ोन था तो बोले- पत्नी का. मैं ये सुनकर हतप्रभ रह गया. वैसे मोबाइल क्रांति के युग में ये किसी एक आदमी की कहानी नहीं है. व्यस्तता के बहाने से हम अब सबसे कटते और बंटते जा रहे हैं.

ऐसे ही, बस स्टाप हो या बस हो, मैट्रो का स्टेशन हो या मैट्रो ट्रेन हो, ऑटो रिक्शा हो, कहीं भी लोग ख़ुद से कटने की हद तक फ़ेसबुक और व्हाट्स एप से जुड़े मिलते हैं. इस फ़ेसबुक ने भले ही सुदूर देशों में रह रहे दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच की दूरियों को ख़त्म कर दिया हो लेकिन इसका एक सबसे बड़ा साइडइफ़ैक्ट ये भी है कि इसने दिलों में मीलों के फ़ासले पैदा कर दिए हैं. फ़ेसबुक परस्पर रिश्ते निभाने की औपचारिकता के काम आने वाले माध्यम के तौर पर आजकल सबसे लोकप्रिय है. ख़ासकर फ़ेसबुक आजकल लोगों का सबसे बड़ा टाइमपास होने का साथ-साथ रिश्तों की एक नई परिभाषा भी लिख रहा है. फ़ायदा ये कि परिवार और रिश्तेदारी में वैचारिक मतभेद रखने वाले भी फ़ेसबुक पर एक साथ जुड़े हैं और नुकसान ये कि जुड़े होने के नाम पर वो सभी फ़ेसबुक की आभासी दुनिया में अपने रिश्तों को लाइक, शेयर और कमेंट के अनुपात में तौल रहे हैं. दिन भर दिमाग़ इसी उधेड़बुन में रहता है कि अब तक फलां ने पोस्ट लाइक क्यूं नहीं किया, फलां ने पोस्ट पर ऐसा कमेंट क्यूं कर दिया, फलां ने उसका पोस्ट तो शेयर किया लेकिन मेरा नहीं किया. 

लोग व्यस्तता के नाम पर एक-दूसरे को समय नहीं दे पा रहे और सबसे ज़्यादा व्यस्त वो फ़ेसबुक पर ही रहते हैं. और ग़लती से फ़ेसबुक से अगर थोड़ा समय बच भी जाए तो वो समय व्हाट्स एप ले लेता है. ये बात सही है कि फ़ेसबुक ने लोगों के मनोभावों और मनोव्यथाओं को सार्वजनिक रूप से उजागर करके उन्हे पहले ये ज़्यादा मुखर बना दिया है लेकिन इस तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि हम आज पांच हज़ार फ़ेसबुक फ्रैंडस् की भीड़ में भी इतने अकेले हो गए हैं कि अपना दर्द और खुशियां बांटने के लिए हमें प्रत्यक्ष माध्यम से ज़्यादा एक अप्रत्यक्ष माध्यम पर निर्भर रहना पड़ रहा है. हम अंजाने में अपनी स्थितियों के साथ ख़ुद को बीच बाज़ार में ले आए हैं. हमारे जीवन की आपाधापी का इस फ़ेसबुक ने सबसे ज़्यादा फ़ायदा उठाया है. दिनभर पैसा कमाने की भागदौड़ में किसी से बिना मतलब के मिलने का हमारे पास अब समय नहीं बचा है. फ़ोन पर एक साथ सबका हालचाल लेने की फुर्सत उस भागदौड़ की थकावट ने हमसे छीन ली है. हमारी इसी मजबूरी का फ़ायदा उठाते हुए फ़ेसबुक हमारे रिश्तों में घुस गया और अब उन रिश्तों का भविष्य भी तय कर रहा है. एक दूसरे का पोस्ट लाइक, शेयर और कमेंट करते-करते हम लोगों से रिश्ते बनाने के भ्रम में -रिश्तों के एक मिथक भरे सफ़र पर निकल पड़े हैं. 

जिनसे हम कभी मिले ही नहीं वो फ़ेसबुक पर हमारे दोस्त बन गए और जो हमारे दोस्त हैं उनसे हम फ़ेसबुक के अलावा कभी और कहीं मिलने का समय ही नहीं निकाल पा रहे. दोस्ती की प्रगाढ़ता का पैमाना अब ये है कि आपकी पोस्ट को किसने-किसने लाइक किया है. जिसने लाइक किया वो दोस्त, जिसने शेयर किया वो पक्का दोस्त और जिसके कमेंट किया वो जिगरी दोस्त. पोस्ट पर कमेंट में की गई आलोचना लोगों के दिलों में एक-दूसरे को लेकर खटास पैदा कर रही है. किसी ने अगर पोस्ट लाइक नहीं किया तो मनमुटाव की स्थिति पैदा हो रही है. एकलाइकअब दोस्ती और रिश्तों के बीच पुल का काम कर रहा है. पहले जिन मतभदों को लोग घर की चारदीवारी में ही बातचीत के ज़रिए सुलझा लिया करते थे अब उन्ही मतभेदों को फ़ेसबुक पर उजागर करके पहले से भी ज़्यादा उलझा रहे हैं. लोग अपने अनजाने दोस्तों के सामने अपने जान पहचान वालों की पोल खोल रहे हैं. रिलेशनशिप अपडेट करने की सनक में रिश्तों की मिठास और कड़वाहट का फ़ेसबुक पर कॉकटेल बना रहे हैं. फ़ेसबुक पर दोस्ती और रिश्तों की नुमाईश का एक शोर मचाता तमाशा सा लगा हुआ है और लोग जो बात एक-दूसरे से आमने-सामने कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते उसे फ़ेसबुक पर लिखकर ख़ुद को उस तमाशे का हास्यास्पद हिस्सा बनाते जा रहे हैं.


विडंबना ये कि लोग अब अपनी जान पहचान वालों की ख़ुशियों और दुखों में फ़ेसबुक के ज़रिए ही शामिल हो रहे हैं. फ़ेसबुक पर ही लोग एक-दूसरे का हालचाल पूछकर औपचारिकता पूरी कर रहे हैं. पांच मिनट में बोली जाने वाली बात को लिखने में पंद्रह मिनट लगाकर लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को ये बता रहे हैं कि उनक पास आजकल बिलकुल भी समय नहीं बचता है. सच तो ये है कि फ़ेसबुक और व्हाट्स एप को लॉगइन करके हम कई लोगों से आत्मिय तौर पर लॉगऑफ़ हो चुके हैं. क्यूंकि फ़ेसबुक पर लोग तभी तक आपके बेहद करीब नज़र आते हैं जब तक आप फ़ेसबुक पर ऑनलाइन होते हैं, ऑफलाइन होते ही अपने अकेलेपन की छटपटाहट हमें फिर से ऑनलाइन होने के लिए उकसाती है और यही आदत हमें हमें रिश्तों को लेकर शंकित और आशंकित होने वाले अनवरत क्रम में फिर से व्यस्त कर देती है.