बस, एक-दो देश और कॉमनवेल्थ गेम्स में आने से तौबा कर लें तो समझो अपनी लॉटरी लग गई। अपने खिलाड़ियों की तो क़सम से निकल पड़ेगी। कोई प्रतिद्वंदी ही ना बचेगा तो अपन निर्विवाद विजेता होंगे। हर स्टेडियम में, हर मैदान में, हर ट्रैक और हर मोर्चे पर अपन बिना मुकाबले के बस पदक लेने जाएंगे। सारे पदक हमारे होंगे। मीडिया निहत्थे कलमाडी की बेवजह ही थू-थू करने की कसम उठा चुका है। अरे, ज़रा पल भर के लिए दम लेकर सोचो तो सही, अपने कलमाडी साहेब बिलकुल सही फरमा रहे हैं। वो हमेशा कहते हैं कि खेल अभूतपूर्व सफल होंगे। सही तो है। इतिहास गवाह है, इससे पहले क्या कभी ऐसा हुआ है कि सारे पदक मेज़बान देश ने ही जीते हों।
स्पर्धाएं ताक़त से नहीं, दिमाग़ से जीती जाती हैं। सलमान खान बताता तो है एक बनियान के विज्ञापन में। कलमाडी वही बनियान तो पहनते हैं। अपने खिलाड़ियों को विजय दीनानाथ चौहान बनाने के लिए कलमाडी बाक़ी देशों के खिलाड़ियों के दिमाग़ पर वार कर रहे हैं। मुक्केबाज़ अखिल कुमार के बैठते ही उनका बिस्तर क्या टूटा, मीडिया, कलमाडी पर बिस्तर से बुरी तरह टूट पड़ा। अरे भईया, यही तो रणनीति है। ये तो अखिल कुमार का प्रोमो था, जिसे देखकर प्रतिद्वंदी मुक्केबाज़ों के छक्के छूट गए होंगे। जिस मुक्केबाज़ के बैठने से ही पलंग चरमरा जाए, वो रिंग में किसी की क्या गत बनाएगा किसी की। क्यों छूट गए ना पसीने?
निर्माण में घटिया सामग्री वाली बात भी कॉमनवेल्थ गेम्स का प्रोमो है। जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के पास वाला फुटओवर ब्रिज तो हमने गिराने के लिए ही बनवाया था भई। बाक़ी देशों को यह बताने के लिए की देख लो हमने तो सब ऐसे ही बनाया है। इसमें भी कलमाडी की दूरदर्शिता प्रशंसनीय है। सभी स्पर्धाओं में प्रतिद्वंदियों को ध्यान स्टेडिम की छत और दीवारों पर ही लगा रहेगा कि कौन सी छत जाने कब गिर जाए, कौन सी दीवार पता नहीं कब ढह जाए और हमारे खिलाड़ियों को प्रतिद्वंदियों के इसी डर का लाभ मिलेगा, क्योंकि डर के आगे जीत है। डरेंगे वो, जीतेंगे हम।
ऐसे ही खिलाड़ियों को डेंगू, सांप और कुत्तों से डराने की रणनीति भी कॉमनवेल्थ गेम्स की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली है। ये सब तो कॉमनवेल्थ गेम्स के ऑफ़िशियल प्रोमो हैं। सो, चियर अप विद कलमाडी। (आज 'हिन्दुस्तान' में प्रकाशित)