अरे भाई, पैट्रोल महंगा होने का केवल एक ही
तो नकारात्मक पहलू है और कि वो महंगा हो गया है वरना तो पैट्रोल अब विलक्षण
प्रतिभावान हो गया है। इसकी महत्ता अब सुदूर पर्वत पर विलुप्त होती जा रही किसी
जड़ी-बूटी से भी ज्यादा बढ़ गई है। पैट्रोल अब सिर्फ पैट्रोल नहीं रहा अपितु ये अब
कई गुणों की खान हो गया है। सरकार को अब जल्द से जल्द पैट्रोल को राष्ट्रीय औषधि
घोषित कर देना चाहिए।
ज़रा सोचिए, अब
पैट्रोल छिड़ककर आत्महत्या करने के मामलों का प्रतिशत कितनी तेजी से घटेगा। यही
नहीं भविष्य में घासलेट, डीजल और एलपीजी के दाम बढ़ाकर सरकार आत्महत्या के मामलों
की आशंकाओं का जड़ से उन्मूलन करने का मन बना रही है। सरकार बड़ी दूरदर्शी है। एक
लीटर पैट्रोल को सात सौ पचास एमएल की बीयर की बोतल से ज्यादा मंहगा करने के पीछे
सरकार की मंशा ‘डिंक एंड ड्राइव’ पर नकेल कसने की भी है। अब किसी
के लिए भी गाड़ी में पैट्रोल भरवाना और मदिरापान करना, एक ही दिन में मुश्किल ही
नहीं नामुमकिन भी है। अब किसी पब में जाकर बीयर पीने से ज्यादा शान की बात है
पैट्रोल पंप जाकर गाड़ी में पैट्रोल भरवाना। पैट्रोल, गरीबी रेखा की सीमा निर्धारण
के पुनर्मूल्याकन में करामाती द्रव्य भी साबित हो सकता है। पैट्रोल भरवा पाने में
सक्षम गरीबी रेखा से ऊपर की कैटेगरी में आएंगे और न भरवा पाने वाले गरीबी रेखा से
नीचे की। मुझे इस फार्मूले के हिसाब से ये देश अमीरों का देश नज़र आने लगा है।
जो आलोचक ये कहते फिर रहे हैं कि
अब खून सस्ता और पैट्रोल महंगा हो गया है, उन्हे सरकार करारा जबाब दे सकती है कि
खून तो हमेशा से सस्ता ही रहा है। या तो ब्लड बैंकों में मुफ्त निचोड़ा और दिया
जाता है या फिर सड़क पर बह जाता है। गरीब का खून पसीना बनकर हवा तक हो जाता है।
लेकिन पैट्रोल के साथ ऐसा नहीं है। पैट्रोल, आम आदमी के खून से ज्यादा बड़ी
ब्रेकिंग न्यूज़ है, एक्सक्लूसिव है, अमूल्य है। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भी खून
की नहीं, पैट्रोल की कीमत मायने रखती है।
इसलिए, पैट्रोल के बढ़े हुए दामों
का विरोध करना छोड़िए। अब पैट्रोल भरवाने से पहले मीटर में ज़ीरो भले ही मत देखिए
अपितु महंगा पैट्रोल भरवाते समय अपने स्टेटस में लग रहे अगिनत चांदों को देखिए और
इतराइए। बर्दाश्त करने के साथ-साथ आपकी महंगा खरीदने की क्षमता भी तो बढ़ रही है।
इसके लिए सरकार को थैंक यू बोलिए। गुस्से में अपना खून जलाने से तो बेहतर है गाड़ी
में पैट्रोल जलाना, कम से कम गाड़ी आपको लेकर किसी मंज़िल पर तो पहुंचेगी।
(आज 28-05-2012 को अमर उजाला में प्रकाशित)
4 comments:
अमर उजाला के लिए बधाई। अनुराग भरी मुस्कान चेहरे पर दी दिखलाई।
हा हा हा... ज़बरदस्त!
सच्चे भारतीय हैं आप। इतनी निर्दयी सरकार की हरकतों पर बढ़िया पर्दा डाला आपने। साधुवाद !
:-)
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