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Tuesday, May 18, 2010

संस्मरण

बद्री विशाल ने मुझे नहीं, रविकांत को बुलाया था....



(ये एक दुखःद संस्मरण है। भगवान के द्वार पर ले जाने वाले रास्ते से बीच में लौट आना निश्चित ही निराश करने वाला रहा। गला ख़राब है इसलिए हर किसी के पूछने पर पूरा वाक्या नहीं बता सकता... सोचा डॉक्टर की हिदायत पर ज़ुबान बंद है तो क्या शब्दों की ज़ुबान तो चला ही सकता हूं.. )



मेरे साथ ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी लाइव शूट से पहले ही मुझे बीच में उसे अधूरा छोड़कर आना पड़ा हो। मैं व्यथित हूं। ये बद्रीनाथ कपाट खुलने का लाइव शूट था। 19 मई को 8 बजकर 7 मिनट पर कपाट खुलने हैं(यानि कल) और उसे कवर करने के लिए पूरी तैयारी के साथ 16 मई को सुबह चार बजे मैं और कैमरापरसन वेद पांडे बद्रीनाथ लाइव के लिए रवाना हो गए। सफ़र लंबा था। हमारा मकसद उसी दिन जोशीमठ पहुंचने का था। दूसरे दिन यानि 17 तारीख़ को जोशीमठ के नृरसिंह मंदिर से शंकराचार्य की पालकी उठने के साथ ही बद्रीनाथ कपाट खुलने के आयोजन का शुभारंभ होता है। हमें वो अपने डेली शो समर्पण के लिए कवर करना था। बहुत ही संगीतमय और भव्य आयोजन होता है ये। मैं इस आयोजन को सहारा समय उत्तरप्रदेश-उत्तराखंड के लिए पहले भी तीन बार कवर कर चुका हूं। इस बार ये सौभाग्य मुझे मेरा चैनल स्टार न्यूज़ दे रहा था। मैं बहुत उत्साहित और रोमांचित था।

लेकिन शायद इस बार बद्री विशाल को कुछ और ही मंज़ूर था। दरअसल परेशानी की शुरूआत 12 मई से होती है। 12 मई की दोपहर अपने सहकर्मी सुशील जोशी के साथ कैंटीन में थम्स-अप पी ली। हम लोग दोपहर के खाने के बाद अक्सर कोल्डड्रिंक पीते हैं। कभी कोई परेशानी भी नहीं होती लेकिन उस दिन शाम गले में ख़राश सी महसूस होने लगी। मैं जानता था मेरा गला थोड़ा सैंसेटिव है और मेरा ही क्या गले से काम लेने वाले तमाम लोग जैसे सिंगर और एंकर का गला काफी संवेदनशील होता है। लेकिन कोल्डड्रिंक से चूंकि ऐसी कोई परेशानी पहले कभी हुई नहीं थी इसलिए पीने से पहले सोचा भी नहीं। रात तक परेशानी में थोड़ा इज़ाफा हुआ तो अपने डॉक्टर गुलाब गुप्ता को फ़ोन करके एपोइंटमेंट मांगा। उन्होने कहा कि आने कि ऐसी कोई ज़रूरत तो नहीं है बस ठंडे से परहेज़ करें और गर्म पानी से गरारे करें और Alex Cough Lozenges चूसते रहें, इससे आराम मिलेगा। आराम ना मिले तो कल दिखा दें। डॉक्टर की सलाह काम कर गई और मुझे आराम मिल गया। हांलाकि शरीर में हल्की टूटन और हरारत बरकरार रही। सोचा थकावट होगी। कुल मिलाकर मैं आराम महसूस कर रहा था।

मैं बद्रीनाथ जाने की तैयारी में जुट गया। बद्रीनाथ मेरी पंसदीदा जगह है। मैं चार बार बद्रीनाथ जा चुका हूं। मैं पहाड़ पर कभी भी कहीं भी जा सकता हूं। घूमने के लिए पहाड़ मेरी पहली पसंद रहे हैं और शायद हमेशा रहेंगे। पांचवी बार बद्रीनाथ जा रहा हूं, मैं प्रसन्न था। मन ही मन रूपरेखा तैयार कर रहा ता कि कौन सा Event अलग तरह से कैसे कवर किया जा सकता है। भव्य और रघुवीर रिचार्या जो स्टार न्यूज़ के कार्यक्रम समर्पण का हिस्सा हैं और प्रोड्यूसर सिद्धार्थ श्रीवास्तव जो बद्रीनाथ पर Documentry बना रहे थे, उनसे भी सलाह लेता रहा। अब सब ठीक था। मुझे तो कम से कम ऐसा ही लगा।

…..तो 16 के ब्रह्म महूर्त में हमें निकलना था और 15 को मेरी ईवनिंग शिफ़्ट थी। शाम 5 बजे recorded चलना था। 6 बजे भी recorded था। मेरे पल्ले एक बस 7 बजे का ‘आज की बात’ था। यूं तो मेरा उसके बाद भी रात 9 बजे का बुलेटिन था लेकिन वो भी recorded था सो मुझे 7 बजे वाला बुलेटिन करके जल्दी जाने की इजाज़त मिल गई। ‘आज की बात’ नकली आइसक्रीम पर केन्द्रित था। कानपुर और अलीगढ़ में आइसक्रीम की नकली फ़ैक्ट्रियां पकड़ी गई थीं जो पेंट और पोस्टर कलर से आइसक्रीम बना रही थीं। हमने भी न्यूज़रूम में कैनवास लगाया, बुलेटिन की शुरूआत कैनवास पर पोस्टर कलर से मेरे आइसक्रीम लिखने के साथ हुई। मैंने लीड ली कि मैं तो इस पोस्टर कलर से सिर्फ आइसक्रीम लिख रहा हूं लेकिन कुछ लोग तो इससे आइसक्रीम बना रहे हैं। अच्छा प्लान था। एजेंडे के मुताबिक नकली आइसक्रीम के नुकसान बताने के साथ-साथ मुझे ON AIR असली आइसक्रीम भी खानी थी, ये कहते हुए कि ये आइसक्रीम नकली नहीं है क्योंकि इसे निर्मित करने वाली फैक्ट्री में आइसक्रीम बनाने के सभी मानकों का ख़्याल रखा गया है। आईडिया, बेहतर तरीक़े से दर्शकों तक बात पहुंचाने के अलावा मज़ेदार भी था, सो मैं पैकेज के दौरान दो-तीन चम्मच आइसक्रीम यूंही खा गया। कुछ और ख़बरों के साथ बुलेटिन ख़त्म हुआ और मैं मेकअप remove करके घर को रवाना हुआ।

गले में कील सी चुभना शुरू हुई। मैं मान ही नहीं सकता था कि आइसक्रीम खाने से ऐसा हो रहा है। क्योंकि एक तो इतनी ज़्यादा मात्रा में मैंने आइसक्रीम खाई नहीं थी और दूसरा ये कि आइसक्रीम मैंने कोई पहली बार नहीं खाई थी। बेमौसम भी नहीं नहीं खाई थी। फिर ये क्या हो गया। मुझे खांसी भी आने लगी। मामला उतना गंभीर नहीं लगा। मैंने बैग लगाया और Himalaya के Saptalin Syrup के दो चम्मच पी कर सो गया। सुबह साढ़े तीन बजे Car Club की गोरी चिट्टी Innova ड्राइवर तेजपाल के साथ दरवाज़े पर खड़ी थी। मैं उसमे सवार होकर Camera Person वेद पांडे के घर पंहुचा और पांच बजे हम मुरादनगर की सरहद पर थे। ड्राइवर को हमेशा की तरह हमने बता दिया कि अगर कहीं पर उसे थकावट हो या नींद आए तो तुरंत हमें बता दे। जान है तो जहान है। वो बोला चिंता मत कीजिए सर मैं लगातर 24 घंटे गाड़ी चला सकता हूं। विडंबना ये की वो मुरादनगर Cross करते ही झपकियां लेने लगा। मैंने और वेद ने फैसला किया कि हम पूरे रास्ते ड्राइवर से बतियाते चलेंगे। हमने किया भी वैसा ही। लेकिन मुझे बोलने में परेशानी महसूस सी हो रही थी। बोलते ही गले में छिलन सी होती थी।

खैर, ऐसा तो अक्सर हो जाता है। रात को ऐसा-वेसा कुछ खा लिया था क्या? वेद ने पूछा। आइसक्रीम- मैंने बताया। बस, उसी से हो गया ये। अब ऐसा करना कि आगे जहां भी रुकें वहां गरम पानी के गरारे कर लेना। वेद पांडे भले ही माने लेकिन मैं अभी भी मानने को तैयार नहीं हूं कि ये आइसक्रीम की वजह से हुआ।

हमारा
ड्राइवर भी बड़ा ढ़ीला था। औंघा-नींदी में या बातों-बातों में बिना टैक्स कटाए ही उत्तराखंड में दाखिल हो गया और ये बात भी पट्ठे को हरिद्वार पहुंचकर याद आई। बोला, अरे सर यहां कहीं टैक्स कटता है। अब क्या करें? अपने स्ट्रिंगर रोहित सिखोला को फ़ोन लगाया। रोहित ने कहा कोई बात नहीं रायवाला पर RTO बैठता है, वहां जा कर टैक्स जमा करा दें। अब ड्राइवर रायवाला में RTO Office ढ़ूंढता रहा। कभी आगे कभी पीछे, कभी दांये कभी बाएं। फिर क्या हुआ? होना क्या था। आरटीओ को ढ़ूंढने के क्रम में आगे निकल गए, किसी ने बताया कि पीछे रह गया। पीछे लौटे तो आरटीओ डंडा लेकर ख़ुद ही प्रकट हो गया।
- गाड़ी कहां से आ रही थी?
- साहब, ऋषिकेश की तरफ से। वर्दी वाला उसका चेला बोला।
- लाओ, पेपर दिखाओ....... टैक्स रसीद कहा है?
- सर, वही तो कटानी है.... हमारा ड्राइवर मिमियाया।
- बहुत अच्छे..... निकालो 3986/- रुपए


हो गया बंटाधार। लौटते का टैक्स लगा... ढपोरशंख की लापरवाही की वजह से। नादान बहुत गिडगिडाया कि साहब मेरी तनख्वाह से कट जाएंगे, लेकिन कोई लाख कोशिशों के बावजूज भी उसकी मदद ना कर सका। ना वो ख़ुद, ना मैं, ना वेद और रोहित सिखोला। तिगुना टेक्स लगा।

RTO से बातचीत और बहस के क्रम में मेरा गला बैठ चुका था। हम वहां से आगे बढ़े और सुबह 10 बजे हम ऋषिकेश में थे। गला ज़रूर ख़राब था लेकिन हम समय पर चल रहे थे। तभी पता चला कि अभी तो ड्राइवर को पहाड़ का लाइसेंस और ग्रीन कार्ड बनवाना है जिसके बिना टैक्सी ऊपर नहीं जा सकती। हमने सिर पीट लिया।

मेरे गले की समस्या बढ़ती जा रही थी। मैंने डॉक्टर गुलाब गुप्ता को फ़ोन लगाया। उन्होने सबसे पहले हिदायत दी कि बोलें बिलकुल नहीं। मैंने कहा कि कल से तो मुझे बस बोलना ही बोलना है। डॉक्टर साहब बोले कि कम से कम आज तो चुप रहें और Lorfast-AM की टेबलेट सुबह-शाम लें, साथ में गर्म पानी के गरारे करें और Alex Cough Lozenges की गोलियां चूसें। वाह रे ऋषिकेश, पूरे साढ़े तीन घंटे में तो ड्राइवर का लाइसेंस और ग्रीन कार्ड बना और उसके बाद पूरे ऋषिकेश में कहीं Lorfast-AM और Alex Cough Lozenges नहीं मिली। डॉक्टर की कैमिस्ट से बात भी करा दी लेकिन किसी के पास Alternative Medicine तक नहीं मिला। डॉक्टर मुझे कोई दो Salt देना चाहते थे जिनमें से एक नहीं मिल रहा था। 2 बजे ऋषिकेश से Strepsils चूसते-चूसते कोडियाला पंहुचे, वहां Gmvn के रेस्त्रां में दोपहर 3 बजे खाना खाया, गर्म पानी से गरारे भी किए। नाश्ता हमने किया नहीं था सो पेट की बुरी हालत थी। कोई फ़ायदा नहीं, मेरी आवाज़ ने अब बैठना शुरू कर दिया था। 4:15 पर हम श्रीनगर पंहुचे। उम्मीद थी कि यहां दवा ज़रूर मिल जाएगी लेकिन मिली नहीं। मैंने फिर गुलाब गुप्ता को फ़ोन किया, वो बोले दवा आपको मिल नहीं पा रही.... गले का मामला है मुझे चिंता हो रही है क्योंकि खाना भी आप बाहर का खा रहे हैं और ऊपर तो ठंड भी अच्छी-खासी होगी। ऐसा कीजिए आप वहीं किसी डॉक्टर को दिखा दीजिए। और अपना ख्याल रखिए।

कौन सा डॉक्टर मिलेगा इस समय? मैं श्रीनगर के जैन केमिस्ट पर था सो उन्ही से पूछ लिया। पता चला कि आज तो रविवार है इसलिए डॉक्टर का मिलना मुश्किल है। मुझे तब पहली बार डर सा लगा। ये क्या है गया मुझे? संयोग से वहां खड़े एक सज्जन ये पूरा प्रकरण देख और सुन रहे थे। बोले, माफ़ कीजिएगा! मेरा नाम संजय है, मैं दिल्ली से ही हूं और इत्तेफ़ाक से एक डॉक्टर हूं। दरअसल कल आडवाणी जी गंगोत्री कपाट खुलने के मौके पर वहां जा रहे हैं और उसी काफिले में यहां के एक स्थानीय नेता भी शामिल हो रहे हैं, मैं उनका फैमिली डॉक्टर हूं और उन्ही के लिए Vaccine लेने आया था। आप एक काम कीजिए Azithomycin 500 और Montair- lc की एक-एक गोली ले लीजिए। Azithomycin 500 तीन दिन और Montair- lc पांच दिन। आपको आराम मिलेगा। मरता क्या ना करता। मैंने वही किया। दवा लेकर लगा कि हां, अब दवा मिल गई है अब तो ठीक होना शुरू हो जाऊंगा।

पहले सोचा कि अब आज के लिए श्रीनगर में ही रुक लिया जाए। ड्राइवर को भी बीच-बीच में झपकी सी आ जाती थी, लेकिन ड्राइवर बोला कि मुझे कोई परेशानी नहीं है, अगर आप आगे चलना चाहें तो चल सकते हैं। मैंने सोचा कि चलों एक घंटे का रास्ता है यहां से रुद्रप्रयाग का, वहीं चलकर स्टे करते हैं, सुबह जल्दी निकल लेंगे जोशीमठ के लिए। एंटीबायोटिक के साथ मैने एंटीएलर्जिक भी ली थी सो मुझे नींद आने लगी। कुछ ही दूर चलकर कालियासौंड़ पर एक ज़ोरदार आवाज़ हुई। मैं और वेद हड़बड़ागए। ड्राइवर भी सकपका गया। वो अभी-अभी देहरादून के रोहन मोटर्स से Maruti Alto निकलवाकर ला रहे थे। उन्होने हमारे ड्राइवर से ओवरटेक मांगा। खिड़की के शीशे बंद होने की वजह से ड्राइवर हार्न सुन नहीं पाया या क्या मालूम वो फिर सो रहा था। जैसे ही Alto बराबर से ग़ुज़रने लगी, हमारा ड्राइवर हड़बड़ा गया। नतीजा, अनकी Alto हमारी Innova से रगड़ती हुई चली गई। Alto का पिछला दरवाज़ा और उसकि बाद वाला पैनल अंदर धंस गया। दोनों एक दूसरे की ग़लती बताने लगे। लेकिन वो लोकल थे, रसूखवाले थे। कोई प्रबंधक थे, ज.उ.मा.वि श्रीकोट, नंदकेशरी, चमोली के, जिनकी Alto थी। वो पुलिस को बुलाने लगे, इधर Car Club के दिल्ली में बेठे लोग नहीं चाहते थे कि मामला पुलिस में जाए। Reputation का सवाल था। मैंने ऑफिस फ़ोन लगाया तो बॉस ने कहा अतुल चौहान और रोहित सिखोला को फोन करके मदद लो और मामले का हल निकालो। पूरे ढ़ाई घंटे के High Voltage Drama के बाद मामला 4000/- में निपटा। गनीमत ये रही वहां रास्ता संकरा नहीं था वरना किसी एक की गाड़ी तो गई थी खाई में। ड्राइवर को बचाने के लिए ALTO वालों से, कार क्लब वालों से और अपने Stringer से हिम्मत ना होते हुए भी बातें करनी पड़ीं.... बहस करनी पड़ी। मेरे गले का बुरा हाल था। जबकि डॉक्टर ने कहा था, बोलना मत। ये 4000/- भी ड्राइवर की जेब से गए। ड्राइवर रो रहा था। मुझे लगता है कि या तो किसी पारिवारिक अथवा official मामले को लेकर वो तनाव में था या फिर वो पहाड़ी रास्ते पर पहली बार आया था। उसने आख़िर तक मेरे इन दोनों सवालों के जवाब नहीं दिए।

शाम के 6-7 बज रहे थे। अब मुझे गले में दर्द के साथ हल्का बुखार भी महसूस होने लगा था। जैसे-तैसे हम रुद्रप्रयाग पहुंचे, वहां होटल में कमरा लिया। हम बेहद थके हुए थे। भूख़ लग रही थी लेकिन खाने की हिम्मत नहीं थी। मैं अब तक दो बार गर्म पानी के गरारे कर चुका था। लेकिन आराम एक पैसे का नहीं मिल रहा था। मैंने रात कोई साढ़े आठ-नौ बजे के करीब अपने बॉस को फोन करके अपनी हालत बताने के साथ ही दूसरे दिन के जोशीमठ लाइव की चर्चा की। बॉस ने गले के लिए एहतियात बरतने की सलाह के साथ ही इत्मिनान दिलाया कि अगर तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है तो चिंता मत करो, जोशीमठ वाला कवरेज रोहित सिखोला कर लेंगे। तुम अपना ख्याल रखो।

रात दस बजे हम खाना खाकर लौटे। मैने फिर गर्म पानी मंगाया और गरारे किए। लेकिन आवाज़ खुलने की बजाए और बैठती जा रही थी। वेद पांडे गहरी नींद में सो चुके थे। मैं बाहर बालकनी में आ गया। हवाएं सर्द थीं। शाम को रोहित ने बताया था कि जोशीमठ में बरसात हुई है। मुझे अहसास होने लगा कि आगे बढ़ने पर मेरी तबीयत और बिगड़ सकती है। जोशीमठ में बरसात के साथ ठंड और बद्रीनाथ में कड़कड़ाती सर्दी। मौसम और बाहर के खाने से मुकाबले के लिए मेरा गला बिलकुल भी तैयार नहीं था। गला बिलकुल रुंध चुका था। जब अभी हालत ये तो निश्चित तौर पर आगे बढ़ने पर हालात और बिगड़ेंगे। ऐसे में इसे भगवान की कठिन परीक्षा मानने की भूल मैं नहीं कर सकता था। मैंने निर्णय लिया कि SHOW MUST GO ON, इससे पहले कि लाइव शो बर्बाद हो, बेहतर है किसी को अपनी जगह बुला लिया जाए।

रात 11 बज रहे थे। मैंने दिल्ली में अपने बॉस मिलिंद जी को फ़ोन लगाकर बताया कि सर, मुझे नहीं लगता कि मैं आगे Continue कर पाऊंगा। अच्छा हो अगर आप किसी और को भेज दें क्योंकि अभी तो स्थिति बिगड़ ही रही है, सुधार की प्रक्रिया तो कोसों दूर है। बॉस मेरी आवाज़ से मेरी बुरी हालत का अंदाज़ा लगा चुके थे। बोले, ठीक है तुम वापस आ जाओ। संयोग से संवाददाता रविकांत हरिद्वार में एक स्पेशल स्टोरी कवर करने आए हुए थे। दस मिनट बाद कि Co-ordination से प्रवीण यादव जी का फ़ोन आया कि कल सुबह 6 बजे रविकांत हरिद्वार से रुद्रप्रयाग के लिए निकलेंगे आप वेद पांडे के साथ उन्हे आगे के लिए रवाना करके उनकी गाड़ी में वापस लौट आइए। तुरंत ही रविकांत का भी फ़ोन आ गया, रविकांत हंसने लगे। बोले- स्क्रीन पर शेर की तरह दहाड़ने वाले एंकर को मिमियाते सुनकर बड़ा मज़ा आ रहा है। उन्होने मेरी वो मिमियाती आवाज़ रिकार्ड भी की। मैं भी हंस दिया।

मेरा दिल अफ़सोस से भर उठा था। मुझे वापस जाना होगा। मैंने उसी वक़्त वेद पांडे को जगाकर अपनी वापसी की ख़बर दी। वो भी स्तब्ध रह गए। थोड़ी देर तक खामोश बैठने के बाद हम दोनों सो गए। सुबह आंख खुली तो वेद भाई नब्ज़ पकड़कर मेरा बुख़ार देख रहे थे। बोले- कल रात लग रहा था तुम्हे वापस नहीं जाना चाहिए था लेकिन अब लग रहा है शायद तुम्हारा फ़ैसला सही था, तुम्हे तो Fever भी है। दवा खाने से पहले मैंने चाय के साथ तीन मट्ठियां खाईं। मट्ठियां वेद पांडे गाज़ियाबाद की किसी मशहूर दुकान से खरीदकर ले गए थे। वैसे भी अब बाहर का खाने से मुझे बचना था।

सुबह के साढ़े नौ बज रहे थे। रविकांत का फ़ोन आया कि वो ऋषिकेश से आगे तक निकल आए हैं। अनुमान के मुताबिक उन्हे हम तक पहुंचने में वहां से तीन-साढ़े तीन घंटे लगने थे। मैने वेद पांडे से कहा कि चलो एटीएम तक चलते हैं, आपको बाक़ी की Production Money सौंपे देता हूं। एक बात ऊपर बताना भूल गया, वो ये कि एक दिन पहले जब मैं श्रीनगर के आप-पास था तो रुद्रप्रयाग के वरिष्ठ पत्रकार श्याम लाल सुंदरियाल जी का फ़ोन ऐसे ही आ गया। पूरे साल भले ही उनसे बात ना हो लेकिन बद्री-केदार के कपाट खुलने से पहले वो नियम से मुझे फ़ोन करके ज़रूर पूछते हैं- आ रहें हैं क्या अनुराग जी? इस बार भी उनका यही सवाल था। मैंने रुंधे हुए गले से कहा- आ रहा हूं दादा... बीच रास्ते में हूं... रुद्रप्रयाग पहुंचने वाला हूं.. उधर से आवाज़ आई कि कौन बोल रहा है? अनुराग जी से बात करनी है। मैंने लाख समझाया कि दादा मैं ही बोल रहा हूं पर वो नहीं माने और फ़ोन काट दिया। इस बार मैंने फ़ोन मिलाया और उन्हे बताया कि मैं अनुराग ही बोल रहा हूं.... आ रहा हूं... बीच रास्ते में हूं... रुद्रप्रयाग पहुंचने वाला हूं.. श्याम जी बोले- अनुराग भाई, आपकी आवाज़ साफ़ नहीं आ रही... लगता है नेटवर्क में कोई गड़बड़ है... आप रखो मैं करता हूं। मैं कुछ कह पाता इससे पहले ही उन्होने फ़ोन काट दिया। फिर तुरंत उनका फ़ोन आया तो मैंने उन्हे अपने गले की स्थिति से अवगत कराया। मैंने उनसे कहा कि मैं रुद्रप्रयाग पहुंचकर उन्हे फ़ोन करता हूं। लेकिन गाड़ी के Accident और गले की परेशानी के चक्कर में मैं रुद्रप्रयाग आकर श्याम जी को फ़ोन करना ही भूल गया।

अब जब हम ATM के लिए निकल रहे थे तो फिर उनका फ़ोन आ गया। ATM पर उनसे मुलाकात हुई। बोले- मुझे लगा आप बिना मिले ही आगे निकल गए शायद। फिर उन्हे भी पूरी कहानी सुनाई। वो ढ़ांढस बंधाने लगे। बोले- सब ठीक हो जाएगा, चलिए पास ही में कोटेश्वर महादेव का मंदिर है, दर्शन कीजिए लाभ मिलेगा। रविकांत को आने में समय था, सो हम श्याम जी के साथ चल दिए। मैं इससे पहले भी लगभग बद्रीनाथ की अपनी हर यात्रा में कोटेश्वर महादेव ज़रूर जाता हूं। दिव्य मं
दिर है ये। गुफा में अड़तीस करोड़ देवी-देवताओं की स्वतः उत्पन्न मूर्ति चिन्ह और उनपर प्राकृतिक रूप से टपकता पानी। यहां पहली यात्रा में खींचा गया गुफा मंदिर का चित्र भी दे रहा हूं... हमने कोटेश्वर महादेव के दर्शन किए और उसके बाद मंदिर के मुख्य महंत शिवानंद जी से भेंट करने मंदिर प्रांगण में आ गए। बातचीत में शिवानंद जी को मेरे गले की समस्या का पता चला। बोले- अरे नहीं-नहीं आप वापस नहीं, बद्रीनाथ ही जाएंगे... अभी ठीक किए देता हूं आपको। उन्होने भभूति (राख) का मिश्रण सा दिया और बोले, इसे चबा-चबा कर खा लीजिए और दो घंटे तक पानी मत पीजिएगा। मैंने उनसे क्षमा मांगी और कहा कि मैं जल्दी से जल्दी दिल्ली पहुंचकर अपने डॉक्टर को ही दिखाना चाहूंगा। शिवानंद जी थोड़ी देर तक विश्वास के साथ आग्रह करते रहे। फिर बोले, जैसी आपकी मर्ज़ी। यहां उनसे क्षमा मांगता हूं। लेकिन मैं बेहद डरा हुआ था और कोई रिस्क लेना नहीं चाहता था।

प्रसाद लेकर हम वहां से वापस लौट आए। GMVN रुद्रप्रयाग में दोपहर का खाना खाया। रविकांत होटल पहुंच चुके थे। मेरे लौटने का समय आ गया था। रविकांत से गले मिलकर बस इतना ही कहा कि मुझे नहीं तुम्हे बुलाया था बद्री विशाल ने। रविकांत बोले, आपका भी प्रणाम कह दूंगा बद्री बाबा से। मैंने कहा- मत कहना, उनसे मैं ख़ुद ही निपट लूंगा। कहकर बद्रीनाथ मंदिर की दिशा में एक पल को निहारा और रविकांत की इंडिका में वापस हो लिया।

वापसी का सफ़र बेहद अफ़सोस और कष्ट भरा रहा। मैं उस रास्ते से वापस लौट रहा था जिसपर आगे बढ़ने पर मुझे भगवान बद्री विशाल के दर्शन होते। लेकिन शायद बद्री विशाल ने मुझे नहीं रविकांत को बुलाया था...

...और हां, जो लोग मेरी तबीयत को लेकर फिक्रमंद हैं उन्हे बता दूं कि मैं दिल्ली लौटते ही डॉक्टर गुलाब गुप्ता से मिल चुका हूं। गले का इंफेक्शन था। ठीक होने में समय लगेगा। मेरा वापसी का फैसला बिलकुल ठीक था। डॉक्टर की सलाह पर मुझे कम से कम तीन दिन खामोश रहकर गले को आराम देना होगा।

5 comments:

Anshuman said...

अबे यार इतना खतरनाक हेडर दिया है, कि बदरीनाथ ने मुझे नहीं रविकांत को बुलाया था। मैने पता नहीं क्या क्या सोच लिया। ईश्वर का शुक्र है मेरी आशंकाएं गलत निकलीं।

Raj Mishra said...

अनुराग जी, ऐसे मौकों पर थोड़ी हताशा जरूर होती है, लेकिन आप कुछ ज्यादा ही निराश हो गए- चलिए इस बार हम सब साथ चलेंगे बदरी के दरबार में
- रजनीकांत

Bhavya said...

Very Interesting Encounter. Hope you are wrll now. But the lesson -never start an important journey in hurry, atleast take time and rest for the preparation.

रविकांत said...

badrivishal ko aapka hello bol diya tha kahne lage anurag se kaho ab sapariwar aaye, hamesha akele akele kyun ghoomta hai. kafi funny mood me mile mujhse. mere gale me hath dal ke bole kabhi phursat se aao tto kuchh bat ho....

drdeepti25@yahoo.co.in said...

अनुराग जी, आपका सुखद और दुखद संस्मरण पढ़ा. मेरा पहाड़ से निकट का रिश्ता रहा है. पहाड़ों का प्राकृतिक सौंदर्य अनोखा और अनूठा होता है. लेकिन यदि किसी का गला Sensitive है तो ऐसे में पहाडी यात्रा कई बार भारी भी पड़ जाती है, जैसा कि आपके साथ हुआ. फिर भी आपकी इस यात्रा ने पाठकों को एक ख़ूबसूरत संस्मरण दिया. हर घटना, हर बात की कुछ न कुछ तो उपलब्धि होती ही है. भले ही आपको बद्रीनाथ से पहले ही लौटना पड़ा, पर आप इतना अच्छा संस्मरण संजोकर लौटे, ये क्या कम है ?
शुभकामनाएं आपकी अगली प्रस्तुतियों के लिए...

दीप्ति