अब अपना किसको कहोगे मियां मुस्कान तुम,
कि ज़माना देखके, पकड़े खड़े हो कान तुम।
लो भुगतो, कि आ गई मुफ़लिसी तुम पर,
तमाम उम्र तो बघारते रहे हो शान तुम।
तुम चबाते हो अपने होंठ परेशां होकर,
लोग समझते हैं खाते हो बहुत पान तुम।
एक मासूम सा बच्चा तुम्हारे भीतर है,
इस बच्चे की न ले लेना, कभी जान तुम।
मैं भला तो जग भला, अमां यार छोड़ो भी,
सूरत से दिखते हो, या वाकई हो नादान तुम।
रोटी, कपड़ा और मकान, बातों से नहीं मिलते हैं,
बड़े ठाठ से रहते हो बना के ख़्वाबिस्तान तुम।
ना रोते ना हंसते हो, ना हिलते ना डुलते हो,
सच को सुनकर गोया हो गए कब्रिस्तान तुम।।
कि ज़माना देखके, पकड़े खड़े हो कान तुम।
लो भुगतो, कि आ गई मुफ़लिसी तुम पर,
तमाम उम्र तो बघारते रहे हो शान तुम।
तुम चबाते हो अपने होंठ परेशां होकर,
लोग समझते हैं खाते हो बहुत पान तुम।
एक मासूम सा बच्चा तुम्हारे भीतर है,
इस बच्चे की न ले लेना, कभी जान तुम।
मैं भला तो जग भला, अमां यार छोड़ो भी,
सूरत से दिखते हो, या वाकई हो नादान तुम।
रोटी, कपड़ा और मकान, बातों से नहीं मिलते हैं,
बड़े ठाठ से रहते हो बना के ख़्वाबिस्तान तुम।
ना रोते ना हंसते हो, ना हिलते ना डुलते हो,
सच को सुनकर गोया हो गए कब्रिस्तान तुम।।
8 comments:
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
बेहतरीन अनुराग!! वाह!
सुन्दर खयालों की गज़ल
बहुत खूब
छा गए भाई मुस्कान तुम
एक मासूम सा बच्चा तुम्हारे भीतर है,
इस बच्चे की न ले लेना, कभी जान तुम।
बहुत उम्दा ग़ज़ल....!!
wow gr8 dear
kya khoob kahe muskan
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