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Thursday, April 21, 2011

सत्य साईं- डायलासिस पर 'भगवान'


सत्य साईं की हालत गंभीर हो गई है। हवा में हाथ लहराकर भक्तों के लिए स्विस घड़ियों से लेकर लड्डू तक प्रकट कर देने का कथित चमत्कार करने वाला ये बाबा अपने लिए ही कोई चमत्कार कर पाने में असमर्थ है। असहाय है। बाबा के भक्त ये सोच कर अपने आंसू पोछ रहे हैं कि जीवन और मृत्यु से तो भगवान भी हारे हैं अस्पताल से जारी मेडिकल बुलेटिन में भी सत्य साईं को भगवान कह कर संबोधित करने वाले बाबा के अनुयायी ज्ञानी डॉक्टर, भावावेश में भगवान की परिभाषा को सत्य साईं पर समर्पित किए दे रहे हैं। जबकि भगवान तो किसी को मरणोपरांत ही कहा जाता है। फिर भी, सत्य साईं अपने भोले भक्तों के लिए वर्षों से भगवान कहलाते हैं।

कलयुग में भगवान को डायलिसिस पर भी देखना लिखा था। यही कलयुग भी है शायद। ईश्वरीय शक्तियों के सामावेश का दावा करने वाले किसी कथित महापुरुष की इतनी दयनीय हालत पहली बार देखी है। कहीं पढ़ा था कि बाबा में चमत्कार करने की कूवत बचपन से ही थी और जब बाबा दुनियादारी समझने लगे तो ख़ुद को शिरडीवाले साईं बाबा का अवतार घोषित कर दिया। बाबा के चमत्कारों से अभिभूत भीड़ ने बाबा का जयघोष कर डाला। फिर दुनिया ने बाबा का चमत्कार देखा और बाबा ने, फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कहावत है कि पीठ पीछे लोग भगवान की आलोचना करने से भी बाज नहीं आते, लिहाज़ा सत्य साईं भी गैर विवादित नहीं रहे। बाबागीरी की दुनियादारी में विवाद अक्सर ख्याति का कारक रहे हैं। सत्य साईं को भी लाभ हुआ। और उन्होने फिर ये लाभ समाज को लौटाया भी। ख़ुद ज़्यादा पढ़-लिख ना सके सत्य साईं ने दुनिया में सैंकड़ों शिक्षण संस्थान भी खोले। वो समाजसेवा करके भगवान बने या भगवान बनकर उन्होनें समाजसेवा की, ये उनके प्रशंसकों और आलोचकों के बीच बहस का मुद्दा हो सकता है।

छियानवे वर्ष की आयु में समाधि लेने की घोषणा करने वाले सत्य साईं के अंग उनके दावे की विश्वस्नीयता कायम नहीं रख पा रहे हैं। शिरडी साई बाबा के समाधिस्थ होने के आठ साल बाद आंध्रप्रदेश के पुट्टापर्थी में जन्में सत्यनारायण राजू जीवन रक्षक तंत्रों की सुविधा पाने के मामले में शिरडी साईं बाबा से ज़्यादा लकी निकले। छियानवे वर्ष की आयु में महासमाधि की घोषणा करने वाले सत्य साईं पिच्यासीवें साल में ही डायलासिस पर लेटे हैं। साईं की ये कौन सी लीला है, भक्तों की समझ से परे है। वो जल्दी ही स्वास्थ्य लाभ लें, यही कामना है।

मुझे सत्य साईं की सत्यता या असत्यता प्रमाणित करके उन्हे सच्चा या झूठा प्रचारित करने की लालसा नहीं है। लेकिन ईश्वरीय शक्तियों के कथित प्रतिनिधियों से हमेशा ही मुझे यह शिकायत रहीं है कि वो सदैव परपीड़न-कामुक अर्थात सेडिस्ट रहा है और पीड़ित ने हमेशा अपने दुखों को अपने पापों का फल समझकर भोगा है। लोगों के दुख दर्द भगवान के अधिकार क्षेत्र से हमेशा ही बाहर रहे हैं। भगवानलोग हमेशा से केवल परीक्षक और जादूगर की भूमिका में ही रहे हैं। सत्य साईं ने भी उसी परिपाटि का ग्रंथानुसरण किया है। पुट्टापर्थी जैसे छोटे से गांव का रेलवे स्टेशन तो अंतरर्राष्ट्रीय स्तर का है लेकिन रेलवे स्टेशन पर भिक्षुओं की परंपरा पर सत्य साईं का भी वश नहीं रहा। इस भगवान ने भी अपनी सामर्थ्य का दिखावा दिल खोल कर किया। फूटी कौड़ी भी ना जोड़ पाए शिरडी साईं के इस कथित अवतार के ट्रस्ट के खाते में लगभग 40,000 करोड़ से भी ज़्यादा रूपए जमा हैं। भगवानलोगों ने प्रत्येक युग में अपनी भव्यता और विलासिता का पूरा इंतज़ाम किया है और पीड़ित, असहाय, दुखी, दरिद्र और बीमार लोगों के बीच अपना आसन लगाया है जो उन्हीं लोगों ने कालांतर में मंदिरों में तब्दील कर दिया।

कोई भगवान अथवा संत दुनिया से दरिद्रता और दुख नहीं मिटा पाया। इस मामले में भगवानों के ख़ुद दरिद्र और दुखी होने के प्रमाण भी मिलते हैं। सत्य साईं के जीवनकाल में भी ऐसा ही समय चल रहा है। वैसे मीडिया सहित कई सूचना एवं संचार माध्यमों के भरपूर इस युग में सत्य साईं शायद उतना जलवा कायम नहीं कर पाए जितना प्रचार-प्रसार माध्यमों के अभावकाल में शिरडी साईं बाबा ने सिर्फ़ 'भगवान भला करेगा, अल्लाह भला करेगा' कह कर दिया। शिरडी साईं के असीम प्रभाव के समक्ष उनका ये कथित अवतार सीमित ही रह गया। ये मेरे निजी विचार भी हो सकते हैं। मेरे विचारों से यदि किसी की भावनाएं आहत हुईं हैं तो मैं क्षमाप्रार्थी भी हूं।

ये भगवान बनने और भगवान बन कर सैलिब्रटी हो जाने का युग है। ये विश्वास और अंधविश्वास के झीने अंतर को खारिज करके अंधभक्ति में डूब जाने का युग है। यहां भक्तों से ज़्यादा संख्या में भगवान होने लगे हैं। भक्त लोग जादू और चमत्कार में भेद करने का पाप नहीं करते और उनका यही भक्तिभाव किसी भी युग में अपना भगवान चुनता है। फिर ये भक्त अपने भगवान को डायलासिस पर देख कर व्यथित क्यों ना हों। मैं असमंजस में हूं कि 'भगवान' के स्वास्थ्य लाभ की कामना करूं भी तो किससे?

9 comments:

anoop joshi said...

bahut dino baad post likhi sir? jahan tak khud ko bhagwan kahne ki batt hai, wo to alag hai.Me baba raamdev ki ijat kartha tha, lekin jab wo interview me khud "swami" Or "sant" kahkar khud sambodhit karte hai to bahut bura lagta hai.

अपना शहर said...

Anurag sir.....Nice nice post...Keep post here so that we can learn from you....Very nice

अजित गुप्ता का कोना said...

आपके साहस को नमन। कुछ दिनों बाद सचिन भी भगवान की तरह पुजने लगेंगे। रजनीकांत तो भगवान बन ही गए हैं।

Marziya Jafar said...

nice article sir

Shah Nawaz said...

"मैं असमंजस में हूं कि 'भगवान' के स्वास्थ्य लाभ की कामना करूं भी तो किससे?"

आपके उपरोक्त शब्दों में जितनी गहराई है, लाखों शब्द भी उसकी बराबरी नहीं कर सकते.

amresh dwivedi said...

अनुराग, धर्म, ईश्वर, भगवान - इस पूरे विमर्श की आधारभूमि आस्था है. करोड़ों लोग जो सत्य साईं में आस्था रखते हैं उनमें बौद्धिकों की कोई कमी नहीं है. सत्य साईं तर्कातीत हैं ऐसा भी नहीं है. लेकिन अपने चारों तरफ़ उन्होंने अपनी महिमा का जो आभामंडल तैयार किया है उसमें सहायक बनने वाले उनके भक्त भी शायद ये बात जानते रहे होंगे कि जब राम, कृष्ण जैसे तथाकथित ऐतिहासिक-अनैतिहासिक भगवन इस धरा पर नहीं रहे तो सत्य साईं, शिरडी के साईं या फिर जितने भी स्वनामधन्य भगवतत्पुरुष हैं उनका जीवनधारण का खाता एक न एक दिन शेष हो ही जाना है. क्योंकि ये एकमात्र सच है. कबीर कहते हैं - सुखिया सब संसार है खावै अरु सोवै, दुखिया दास कबीर है जागै अरु रोवै. यानि सत्य साईं अपने घोषित समाधिकाल से पहले जाएंगे या नहीं ये विमर्श अपनी जगह है. लेकिन ये सच है कि उन्होंने कभी ये नहीं कहा कि वो अमर रहेंगे. या फिर उनके शिष्य भी शायद ये बात जानते ही होंगे. जो बात उन्हें तथाकथित भगवान बनाती है वो ये कि लाखों करोड़ो लोगों के अंतस्थल को उन्होंने अपने कथित चमत्कार-भभूत से कभी-न-कभी, कहीं-न-कहीं छूआ जरूर है. अन्यथा इस आधुनिक भागमभाग वाले घोर भौतिक युग में जब कोई अपने पड़ोसी के लिए भी मानवता के नाते समय नहीं निकाल पाता, वहां सत्य साईं के दरबार में लोग आखिर मत्था क्यों टेकते.
तुम्हारी बात मुझे बहुत अच्छी लगी. मैंने थोड़ा विषयांतर कर दिया. मूल बात ये है कि भगवान हों या सत्य साईं - इनकी उम्र के साथ ही आस्था की भी एक आयु होती है...अन्यथा कभी भारत में जन्मे और फले-फुले जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायियों की संख्या कालक्रम में गिनती की न रह गई होती. हीनयान और वज्र यान के माननेवाले लुप्तप्राय न हो गए होते. सत्य साईं कालकवलित होंगे...लेकिन उन्होंने अपने इर्दगिर्द आस्था का जो संसार रचा है और जिसने करोड़ों लोगों को जिंदगी की राह दिखाई है उसका महत्व तो फिर भी रह जाता है न. राम और कृष्ण को न हमने जीवित देखा है और न मृत लेकिन आज भी संकट की घड़ी में हे ईश्वर स्मरण हो ही आता है. यही संकट और संकट का आसन्न भय सत्य साईं के मानवीकृत भगवन रूप को हमेशा जीवित रखेगा क्योंकि भगवान को जो भव्यता मिली है वो तो इनसानों ने ही कालक्रम में उनमें शक्ति का उत्तरोत्तर आरोपण कर सृजित की है.

तुम मेरे विचारों से असहमत भी हो सकते हो.

Anonymous said...

सर पहले तो इतना बढ़िया लेख लिखने के लिए बधाई...अब मुद्दे पर आते हैं... आपने वही लिखा जो आपने सुना या देखा है... लेकिन दिल पर हाथ रखकर कहिए क्या आपने कभी सत्य साई से मुलाकात की क्या आपने कभी उनसे बात की... क्या आप कभी पुट्टापर्थी तक गए हैं...जवाब मैं जानता हूं लेकिन आपको समझना होगा... दूसरी बात विवाद का नाता तो गांधी के साथ भी था... अन्ना के साथ भी है और तो और जिन शिरडी साई को आपने कौड़ी को मोहताज बताया उनके साथ भी रहा है... क्या आपको नहीं लगता जिस शख्स का पैर देश के तीन प्रधानमंत्री छूते हो जिसकी लाश पर बैठकर सचिन जैसा हीरो आंसू बहा रहा हो वो कम से कम करिश्माई व्यक्तित्व होगा... देखिए सर हम लोग आलोचना प्रेमी है... जिसका मन करे बजा दो... और ब्लाग कल्चर में भी यही हो रहा है...किसने आपसे कहा की भगवान के कष्ट नहीं सहा... जीसस का कष्ट कैसे भूल सकता है कोई...ठीक है वो जादू करते थे और सोने की चेन प्रकट हो जाती थी लेकिन आम भक्त के जीवन में आकर कोई चमत्कार कैसे कर सकता है... आडवाणी ने कहा है मैं नहीं कह रहा इमरजेंसी में वो जेल में बंद थे और उनकी पत्नी साई से मिलने गई उनके घर वापस आते आते आडवाणी जेल से छूट गए...उन्होने पैसा कमाया लेकिन इस पैसे को समाज के कल्याण के लिए भी लगाया... और जब करोड़ो लोग उन्हे भगवान मानते है लेकिन किसी को दुख नहीं पहुंचाते किसी का कत्ल नहीं करते तो इतना हो हल्ला काहे का... छोड़ दो सत्य साई को उन्होने किसी को गोली नहीं मारी... अगर थोड़ा धन कमा लिया तो जलन करने की बजाय खुद को आगे बढ़ाया जाए... अगर कोई शब्द आपको बुरे लगे तो क्षमा..

आपका छोटा भाई...

Anonymous said...

सर पहले तो इतना बढ़िया लेख लिखने के लिए बधाई...अब मुद्दे पर आते हैं... आपने वही लिखा जो आपने सुना या देखा है... लेकिन दिल पर हाथ रखकर कहिए क्या आपने कभी सत्य साई से मुलाकात की क्या आपने कभी उनसे बात की... क्या आप कभी पुट्टापर्थी तक गए हैं...जवाब मैं जानता हूं लेकिन आपको समझना होगा... दूसरी बात विवाद का नाता तो गांधी के साथ भी था... अन्ना के साथ भी है और तो और जिन शिरडी साई को आपने कौड़ी को मोहताज बताया उनके साथ भी रहा है... क्या आपको नहीं लगता जिस शख्स का पैर देश के तीन प्रधानमंत्री छूते हो जिसकी लाश पर बैठकर सचिन जैसा हीरो आंसू बहा रहा हो वो कम से कम करिश्माई व्यक्तित्व होगा... देखिए सर हम लोग आलोचना प्रेमी है... जिसका मन करे बजा दो... और ब्लाग कल्चर में भी यही हो रहा है...किसने आपसे कहा की भगवान के कष्ट नहीं सहा... जीसस का कष्ट कैसे भूल सकता है कोई...ठीक है वो जादू करते थे और सोने की चेन प्रकट हो जाती थी लेकिन आम भक्त के जीवन में आकर कोई चमत्कार कैसे कर सकता है... आडवाणी ने कहा है मैं नहीं कह रहा इमरजेंसी में वो जेल में बंद थे और उनकी पत्नी साई से मिलने गई उनके घर वापस आते आते आडवाणी जेल से छूट गए...उन्होने पैसा कमाया लेकिन इस पैसे को समाज के कल्याण के लिए भी लगाया... और जब करोड़ो लोग उन्हे भगवान मानते है लेकिन किसी को दुख नहीं पहुंचाते किसी का कत्ल नहीं करते तो इतना हो हल्ला काहे का... छोड़ दो सत्य साई को उन्होने किसी को गोली नहीं मारी... अगर थोड़ा धन कमा लिया तो जलन करने की बजाय खुद को आगे बढ़ाया जाए... अगर कोई शब्द आपको बुरे लगे तो क्षमा..

आपका छोटा भाई...सुधीर कुमार पाण्डेय

Unknown said...
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