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Thursday, September 8, 2011

धमाके में मारे गए लोगों को तो मरना ही था..!

दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर धमाका हुआ। तमाम लोग मारे गए। आम आदमी से लेकर प्रधानमंत्री तक सबको बेहद अफसोस हुआ होगा। अफसोस से ज्यादा और हो भी क्या सकता था और विश्वास रखिए अफसोस से ज्यादा कुछ होने वाला भी नहीं है। मुआवज़ा मिलेगा। मुआवज़े से मरनेवाला तो वापस आएगा नहीं। हां, उस पैसे से खरीदकर लाई गई हवन सामग्री से मरने वालों की आत्मा की शांति के लिए यज्ञ और पूजा पाठ ज़रूर किया जा सकता है। अरे मज़ाक मत समझिए, अब और कर भी क्या सकते हैं भई? धैर्य और संयम रखा है ना आपकी अंटी में, तो निकालिए उसे अंटी से और बिलकुल खैनी के माफ़िक दबा लीजिए मुंह में।


अब मरने वालों का अफ़सोस कौन मनाए। ना प्रधनमंत्री के पैस टैम है ना गृहमंत्री के पास और ना हमारे-आपके पास। ऐसे हादसों में हताहतों के लिए आंसू बहाने के लिए तो भईया ओवर टाईम करना पड़ेगा, वरना यहां अपनी सलामती के लिए संघर्ष करने से फुर्सत ही कहां मिल पाती है। नौकरी-पेशे के अलावा पूरा दिन और आधी रात इसी उधेड़बुन में निकल जाती है कि सब्जियां, आटा, दाल और चावल सबसे सस्ते कहां मिल रहे हैं। ईमानदारी की कमाई में महीने के तीसों दिन दो वक्त की दाल-रोटी के वांदे हो रहे हैं और इक्कतीस के महीने में तो एक दिन व्रत रखना पड़ जाता है। ये हाल तो तब है जब घर में दो कमाने वाले हों, एक कमाई वाले घर में तो सोमवार, मंगलवार अथवा बृहस्पतिवार का मासिक व्रत रखे बगैर काम ही नहीं चलता। ऐसे में जब अपनी जान के लाले पड़े हों, दूसरे के दुखः में अफसोस जताना उसे मिलने वाले सरकारी मुआवजे से भी ज्यादा बड़ा योगदान है।


वह तो अच्छा है कि हमने धैर्य और संयम की घुट्टी घोंट कर पी रखी है वरना हम तो बिना किसी हादसे के दहशतगर्दी का मंजर देखकर ही कब के मर जाते। हम जिंदा ही इसलिए हैं क्योंकि हमने धैर्य और संयम का अमृत पी लिया है। हम अजर-अमर हो चुके हैं। हमने अमरत्व प्राप्त कर लिया है। अब हमारा कोई कुछ भी बिगाड़ ले हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। हम जानते हैं कि जीना और मरना तो उपर वाले के हाथ में है बाबू मौशाय, अरे, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं रे, किसे कब, कैसे और कहां उठना है इसकी डोर तो ऊपरवाले के हाथ में हैं। हा... हा... हा...। जो इस दुनिया में आया है उसे तो एक न एक दिन इस दुनिया से रुखसत होना ही है। फिर इससे अच्छी विदाई भला क्या हो सकती है कि कुछ भोले-भाले निरीह इंसानों के पता ही न चले कि उनकी मौत दहशतगर्दों के गाल पर एक करारा तमाचा बन गई है। दहशतगर्दी के गाल पर जो तमाचा कभी न मार कर सरकार कुसूरवार बन गई वह तमाचा कुछ बेकसूरों ने मार दिया। और वैसे भी धमाके में मारे गए लोगों को आज नहीं तो कल मरना ही था। सबको मरना है। लेकिन वो अपनी मौत मरते तो शायद गुमनाम ही रह जाते, अब कम से कम आतंकवादियों के गाल पर तमाचा जड़ने वाले मृतकों की सरकारी सूची में अपना नाम तो दर्ज करा गए।


अब देखिए इसमें करना कुछ नहीं है। टेंशन लेने का नई। बस, धैर्य और संयम के साथ काम लेना है। धैर्य और संयम का यह संशोधित अध्याय है। जिसका अंत पूर्ववत पंक्ति से ही होता है कि दहशतगर्दी चाहे देश से बाहर को हो या आंतरिक, अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। धैर्य और संयम के इस संशोधित अध्याय में आतंकवाद की कड़े शब्दों में निंदा करने को इस बार विशेष महत्व दिया गया है। कुल मिलाकर धैर्य और संयम के सब्जेक्ट में सभी का कम से कम स्नातक होना अनिवार्य किए जाने के संबंध में ठोस योजना तैयार किए जाने पर काम चल रहा है। दहशतगर्दों से लड़ने के लिए धैर्य और संयम के स्नातकों की फौज तैयार की जा रही है। आने वाले समय में धैर्य और संयम की थ्योरी और प्रयोगों को भलि-भांति समाझाने के लिए अतिरिक्त कक्षाएं लगाए जाने की भी संभावनाएं हैं। धैर्य और संयम के इस कोर्स को कालांतर में परास्नातक के लिए भी अनिवार्य कर दिया जाएगा। धैर्य और संयम पर गेस्ट लेक्चर के लिए बराक ओबामा और यूसुफ़ रज़ा गिलानी को आमंत्रित भी किया जा सकता है। समय-समय पर धैर्य और संयम पर अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार आयोजित करा कर 'वर्तमान संदर्भों में इसकी महत्ता' विषय पर समीक्षा भी कराई जाती रहेगी। सेमिनार की प्रचार सामग्री पर एक विशेष नोट लिखा होगा- समीक्षा में धैर्य और संयम की अलोचना मान्य नहीं होगी, धैर्य और संयम की आलोचना को दहशतगर्दी की मानसिकता से प्रभावित और प्रेरित माना जाएगा। इस संबंध में विधेयक जनलोकपाल से पहले पेश और पास किया जाएगा।


मुझे धैर्य और संयम के इस पाठ्यक्रम का भविष्य उज्जवल दिखाई दे रहा है। क्योंकि आने वाले समय में धैर्य और संयम के हथियार से हमें केवल आतंकवाद और भ्रष्टाचार को ही मुंह तोड़ जवाब नहीं देना है बल्कि आसमान से चुंबनरत महंगाई का मुकाबला भी करना है। हमें न्याय की खोखली आस में हर अन्याय का सामना धैर्य और संयम के साथ ही करना है। धैर्य और संयम के बेहतर प्रचार-प्रसार के लिए हम गांधीजी के तीन बंदरों की तरह धैर्य और संयम के बंदर भी बना सकते हैं। जिसमें धैर्य का बंदर बिजली के करंट प्रवाहित तारों से चिपका होगा और संयम का बंदर पूरी सहजता के साथ चुपचाप नीचे खड़ा यह तमाशा देख रहा होगा। यहां निजी अनुभव के आधार पर बताना चाहूंगा कि धैर्य और संयम का पाठ कंठस्थ करने के लिए गीता-सार का भी अध्ययन करें और जिन लोगों का धैर्य और संयम जवाब दे रहा है उन्हे भी गीता का सार पढ़ने से विशेष लाभ होगा। फिर देखिएगा धीरे-धीरे धैर्य और संयम कैसे हमारी राष्ट्रीय भावना बन जाएगा। क्या ख़्याल है आपका...?

12 comments:

priyambada said...

Anurag ji ,bahut khoob...........

DR. ANWER JAMAL said...

आतंकवादी आज तक नाकाम हैं और इंशा अल्लाह आगे भी नाकाम ही रहेंगे।
आतंकवादी बस धमाके कर सकते हैं लेकिन आपस में नफ़रत नहीं फैला सकते।
यह काम हमारे और आपके पास में रहने वाले शैतान करते हैं। आतंकवादी जिस मिशन में नाकाम रहते हैं हर बार , ये इंसानियत के दुश्मन उन्हें कामयाब करने की हमेशा कोशिश करते हैं।
हमेशा ये लोग विदेशी आतंकवादियों को गालियां देने के नाम पर पूरे विश्व में और भारत में बसे एक विशेष समुदाय और उसके धर्म को गालियां देते हैं ताकि प्रति उत्तर में सामने वाला भी गालियां दे और उनके पूरे समुदाय से नफ़रत करे।
यह इनकी चाल होती है।
विदेश के जिस खाते से विदेशी आतंकवादियों को डॉलर मिलते हैं, आप चेक करेंगे तो उसी खाते से इन देसी वैचारिक बमबाज़ों को भी डॉलर मिलता पाएंगे।
अंग्रेज़ दो टुकड़ों में भारत को पहले ही बांट गए थे और तीसरे के बंटने के हालात पैदा कर गए थे और साथ ही अरूणाचल समस्या भी अंग्रेज़ों की ही देन है।
उन्होंने ऐसा इसलिए किया था ताकि भारत हमेशा अशांत बना रहे और उन्हें अपना जज बनाकर उनसे फ़ैसले कराता रहे और नये नये आंदोलनों के फ़ैसले मानवाधिकार के नाम पर करते हुए वे इसे और छोटे छोटे टुकड़ों में बांटते चले जाएं और इसका नक्शा बिल्कुल ऐसा हो जाए जैसा कि मुसलमानों के आने से पहले था। हज़ारों छोटे छोटे राज्य और उनके ख़ुदग़र्ज़ शासक।
खिलाफ़त का ख़ात्मा अंग्रेज़ों ने इसीलिए किया और उसे बहुत से छोटे छोटे टुकड़ों में बांट कर रख दिया और सारे अरबों को अपने सामने बेबस और कमज़ोर बना दिया।
एक सशक्त एशिया अंग्रेज़ों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।
भारत हो या पाकिस्तान, दोनों ही जगह बम धमाके हो रहे हैं तो इसके पीछे दोनों का साझा दुश्मन है।
वह दुश्मन कौन है ?
उसे पहचानिए और उसका उपाय कीजिए और एशिया में आबाद लोगों को प्रेम का संदेश देते हुए अपनी शक्ति बढ़ाते हुए चलिए।
मौजूदा दौर में करने का काम यही है ,
...और इसी के साथ जो मुजरिम किसी लालच में या नफ़रत में अंधे होकर बम धमाके कर रहे हैं, उनकी सुनवाई अलग अदालतों में तेज़ी से की जाए और ईरान की तरह मात्र 3 दिनों मे चैराहे पर क्रेन में लटका दिया जाए और उसका वीडियो पूरी दुनिया को दिखाया जाए कि हमारे यहां आतंकवादी का हश्र यह होता है और तुरंत होता है और यही हश्र उन वैचारिक आतंकवादियों का भी होना चाहिए जो किसी के धर्म, समुदाय और महापुरूषों को गालियां देकर नफ़रत फैला रहे हैं क्योंकि ये आतंकवादियों से भी बदतर हैं।
आतंकवादियों ने इतने भारतीयों की जान आज तक नहीं ली है जितने लोगों को ये बलवाई दंगों में मार चुके हैं। देश को बांटने वाले दरअसल यही हैं और चोला इन्होंने देशप्रेम का ओढ़ रखा है।

Sunil Kumar said...

यह जनता कोई अमृत पी के तो आयी नहीं है कि कभी मरेगी नहीं जिसको भूख से मारना था वह आतंकवादी के बम से मर गया क्यों आसमां सिर पर उठा रखा हैं | और कुछ काम नहीं है क्या ?:(

rk said...

janta ka time kab aaye ga ! kaya mission anna is ki shuruat hai ?

rk said...

janta ka time kab aaye ga ! kaya mission anna is ki shuruat hai ?

Prashant said...

सामयिक समाज के धैर्य और संयम रुपी कपड़ों को उतार कर , 'नंगी' हक़ीकत से रु-ब-रु कराता लेख... सधी हुई कलम से लिखा गया बारूदी लेख..,

krishna murari pandey said...

पर अनुराग जी गद्दी पर बैठे इन गिद्दडोँ का क्या। इनका तो कोई नहीँ मरता और अगर मरता भी तो इनके गुर्गे चक्का जाम या देश बंद का आहवान कर देते।
आखिर कब तक

Shah Nawaz said...

दुश्मनों को कुछ ऐसे डराते हैं हमारे गृहमंत्री!

गृहमंत्री: यह हमला केवल दिल्ली (पहले मुंबई, अब दिल्ली) पर नहीं, बल्कि पुरे देश पर हमला है। यह भारत की एकता, अखंडता और समृद्धि पर किया गया हमला है। पानी सर से ऊपर जा चुका है, देश ऐसी हरकतों को हरगिज़-हरगिज़ बर्दाश्त नहीं करेगा। देश के दुश्मनों पर कड़े से कड़े कदम उठाए जाएँगे!


मैं देशवासियों से आह्वान करता हूँ कि सरकार का अनुसरण करें, आवेश में ना आएँ, एकजुटता और "संयमता" के हथियार से देश में छुपे अथवा पडौसी देश की गोद में बैठे देश के दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दें!

anshumala said...

देखीये ये जीवन क्या है बस एक छड भंगुर है हर किसी को एक दिन इस दुनिया से जाना है कोई आज जायेगा, कोई कल जायेगा किन्तु याद रखियेगा की हम सभी की आत्मा नहीं मरती है, मरता है तो ये शरीर आत्मा तो जीवित रहती है और जल्द ही किसी और शरीर में प्रवेश कर जाती है किसी और बम ब्लास्ट में मरने के लिए किसी और आतंकवादी हमले में किसी रेल दुर्घटना में मरने के लिए, उसके जाना का दुख नहीं करना चहिए | जो लोग विस्फोटो में घायल हुए है तो लोगों को उनके लिए दुखी होने की जरुरत नहीं है क्योकि ये आतंकवादियों के कृत्य नहीं है असल में तो ये उनके ही पूर्व जन्मो के और इस जन्म के कर्मो का नतीजा है उनके बुरे कर्मो का फल है जिसको उन्हें भोगना ही पड़ेगा आतंकवादी तो बस उसे पुरा करने में हमारी मदद करते है वो तो बस निमित्य मात्र है साधन है हमारे कर्मो का फल हमें देने में | अब इन सबके बीच बेचारे हमारे मंत्री गण हमारी सुरक्षा एजेंसिया क्या कर सकती है आखिर वो ऊपर वाले के काम में दखलंदाजी क्यों करे |२६/११ के बाद जो करोडो के अत्याधुनिक हथियार ख़रीदे गये बख्तर बंद गाड़िया खरीदी गई उसक क्या फायदा है वो क्या काम आये अब कोई इन मूर्खो से पूछे की भाई इसमे मंत्री क्या कर सकता है इस बार जब आतंकवादियों ने बिना बताये अपना पैटर्न बदल दिया वो वापस से अपने पुराने तरीके पे आ गये, तो बेचारे मंत्री क्या कर सकते है उन्होंने तो ये सोच कर बख्तर बंद गाड़ी ली थी की २६ /११ की तरह फिर से दस बारह आतंकवादी देश में घुस जायेंगे ( देश के युवराज ने कहा है की हम १००% सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकते है एक दो घटनाये तो हो ही सकती है सो आतंकवादी इतनी बार घुसपैठ करते है एक दो बार घुस कर हमला तो कर ही सकते है इतनी छुट तो हमारे भविष्य के प्रधान मंत्री भी आतंकवादियों को देते है ) तो हमारे पुलिस वाले कम से कम सुरक्षित हो, बख्तर बंद गाडियों के अंदर से वो आतंकवादियों से आसानी से लड़ सकते है अपना मुँह छुपा सकते है, और रही अत्याधुनिक हथियारों की बात तो उसी से तो उन्हें मारते पर कम्बख्त आये ही नहीं पिछले हमले की तरह ,ये भी कोई बात हुई एक बार में आतंकवादी कुछ तय नहीं कर रहे है की उन्हें हम पर कैसे हमला करना है वो एक तरह से हमला करते है हम उस तरीके से लड़ने के सारे इंतजाम करते है वो दूसरे तरीके से हमला कर देते है अब इसमे बेचारे हमारे मंत्री सुरक्षा एजेंसियों का क्या दोष है |

Anonymous said...

ye itni badi ramayan likhkar aap apne blog mein ek naya write uo add kar liye...masala mil gaya kuch updesh dene ka...bakwas likhna band karye.....aap media wale ye to bata dete hai ki itne log mare itna muawaza milna hain........mila ya nahi ye q nahi batate....wakai aaplog fourth piller nahin fourth monkey ho.....aur aapka madari neta hain.....wake up mr.Chauth Bander..

Antarman said...

अनुराग जी.
आप ने लिखा उससे थोडा सहमत भी हूँ और नही भी.
दिल्ली में जीते मरे उनमे सी कुछ अपनी जमानत क लिए आये थे,
जरूरी नही की वो मरते ही.
मीडिया हमेशा बताता है आतंकवादी ने किया,
वो किया पर कभी ये नहीं बताया की उनक पास पैसा कहाँ से आता है,
असलाह कहाँ से आता है.........
अनुराग जी आतंकवादी बनाना और उन्हें खरीदना दोनों अलग बाते है.
अगर लश्कर ऐ तोएबा आतंकवादी बनता है तो उन्हें खरीदता कौन है,
...बिना किसी इरादे, उद्देश्य और चाहत के धमाके नही हो सकता....
लोग किता भी बोल ले की ये खौफ क लिए है, पर किसका खौफ, और क्यों?

Antarman said...

अनुराग जी.
आप ने लिखा उससे थोडा सहमत भी हूँ और नही भी.
दिल्ली में जितने मरे उनमे सी कुछ अपनी जमानत के लिए आये थे,
जरूरी नही की वो मरते ही.
मीडिया हमेशा बताता है आतंकवादी ने किया,
वो किया पर कभी ये नहीं बताया की उनके पास पैसा कहाँ से आता है,
असलाह कहाँ से आता है और भी बहोत कुछ .........
अनुराग जी आतंकवादी बनाना और उन्हें खरीदना दोनों अलग बाते है.
अगर लश्कर ऐ तोएबा आतंकवादी बनता है तो उन्हें खरीदता कौन है,
...बिना किसी इरादे, उद्देश्य और चाहत के धमाके नही हो सकता....
लोग किता भी बोल ले की ये खौफ क लिए है, पर किसका खौफ, और क्यों?