Followers
Sunday, May 30, 2010
माफ़ करना बिहारी भाइयों...
देखो भाई लोग, सबसे पहले तो आपको वादा करना होगा कि इस पोस्ट में की गई मज़ाक को Chill Pill की तरह लोगे, सीरियसली कतई नहीं लोगे... और लेना ही है तो लेलो... मेरा काम था वैधानिक चेतावनी जारी करना सो मैंने कर दी, अब मेरी बला से। तो हाज़रीन, वो क्या है ना कि हमलोग यानि न्यूज़ वाले बड़े तनावग्रस्त माहौल में काम करते हैं और उस तनाव को थोड़ा कम करने के लिए कभी कभार हल्का-भारी मज़ाक कर लिया करते हैं।
ऐसा ही उस दिन हुआ। हुआ ये कि ज्ञानेश्वरी ट्रेन हादसे के बाद लालू प्रसाद यादव की बाइट आई कि ड्राइवर आंखे मूंद कर ट्रेन चला रहा होगा... लालू का बयान मौक़े को देखते हुए सबको नागवार गुज़रा। मेरे सहकर्मी छतरपाल खिंची ने लालू को भला-बुरा कहा और गुस्से में ही बोले कि 'यार ये लालू रेलमंत्री डिज़र्व ही नहीं करता था' फिर छतर ने पता नहीं किस प्रवाह में सवाल उछाल दिया कि अगर बिहार में ट्रेनें ही नहीं चलतीं तो क्या होता?' छतर के इतना कहते ही हादसे में 65 हो चुके death toll का तनाव हल्का होने लगा।
लोग अपनी-अपनी राय रखने लगे। मेरे सहकर्मी अनुराग श्रीवास्तव बेलौस बोलते हैं.. कोई उनकी बात का बुरा भी नहीं मानता... वो अक्सर अपने बिहारी सहकर्मियों से मज़ाक करते हैं कि ‘अबे…, तुम लोग पैदा होते जन्मपत्री बनवाने की बजाए दिल्ली और मुंबई जाने वाली ट्रेन की टिकट क्यों बनवाते हो..?’
पीसीआर में रायशुमारी की सुनामी आ गई साहब। कोई बोला कि बिहार में ट्रेने नहीं चल रही होतीं तो मुंबई में राज ठाकरे घास काट रहे होते। भाईलोग ट्रेन पकड़-पकड़कर मुंबई पहुंचे और एमएनएस बनवा दी। एक बोला- 'मैंने तो यहां तक सुना है कि बिहार से चलने वाली संपर्क क्रांति दिल्ली आकर वीडियोकोन टॉवर के सामने ही डीरेल हुई थी, तभी से भाई लोग हमारे सहकर्मी हुए।' बाबा जोश ने भी चुटकी ली बोले- 'अरे भाई, वहां से ट्रेन यहां ना आई होती तो नौएडा के सेक्टर-58 की सड़क किनारे लाईन लगा के लिट्टी-चोखे वाले कैसे खड़े हो पाते होते..?' हमारे यहां रोशन कुमार बिहार के आरा से आते हैं, मज़ेदार आदमी हैं। कभी किसी बात का बुरा नहीं मानते। रोशन की हम लोग मज़ाक भी बनाते हैं क्योंकि वो लीव (leave) को ‘लीउ’ बोलते हैं यानि अगर उन्हे मालद्वीव बोलना होगा तो वो ‘मालद्वीउ’ उच्चारण करेंगे।
मैंने भी मज़े लेते हुए कहा, कि भई इतना तो तय है कि तब नौएडा का सेक्टर ग्यारह, सेक्टर ग्यारह ही रहता, ‘ईग्यारह’ ना हो गया होता।
बातें तो और भी बहुत सी हुईं अब यहां क्या-क्या लिखूं। लेकिन एक बात बता दूं कि कुछ लोग चाहते थे कि मैं ये पोस्ट ब्लॉग पर ना डालूं मगर उससे भी कहीं ज़्यादा संख्या ऐसे लोगों की थी जो ये चाहते थे कि मैं इसे पोस्ट ज़रूर करूं। यानि राज ठाकरे मुंबई में ही नहीं, यहां अपनी दिल्ली में भी ख़ूब हैं।
वैसे जहां तक मेरी मंशा का सवाल है मैंने ये क़िस्सा किसी पर हमले के तहत नहीं लिखा है। मेरा मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना कतई नहीं है। उस दिन बिहारी टारगेट हो गए वरना किसी दिन यूपी वाले, एमपी वाले तो किसी दिन दक्षिण भारतीय और तो और किसी दिन असमिया और उड़िया साथी निशाने पर होते हैं। एक वाक़्या बताता हूं आपको। हमारे पीसीआर में साउंड पैनल पर उड़ीसा से पपुना बस्तिया नाम के सहकर्मी हुआ करते थे। एक दिन लाइव शो में दर्शकों की राय फ़ोन के ज़रिए ली जा रही थी, पपुना पैनल प्रोड्यूसर को चिल्लाकर बताते थे कि कहां से किसका फ़ोन है। इसी क्रम में पपुना चिल्लाए- जमसेदपुर से सेक्सी का फोन है। पीसीआर में सन्नाटा पसर गया। ‘किसका फ़ोन है?’ प्रोड्यूसर से हैरत से पूछा। ‘जमसेदपुर से सेक्सी का’, पपुना ने दोहरा दिया। दरअसल वो जमशेदपुर से किसी ‘साक्षी’ का फ़ोन था। उस दिन के बाद इस बात को लेकर पपुना की टांग खिंचाई रोज़ ही होती थी। किसी भी माहौल में ये बात याद आने पर हम लोग आज तक हंसी नहीं रोक पाते। पपुना के और भी मज़ेदार क़िस्से हैं, फिर कभी सुनाउंगा।
यहां समझने वाली बात ये है कि हम लोग ख़बरों के प्रेशर में किसी की बात का बुरा माने बिना किस तरह relaxation तलाश करते हैं। मौक़ा मिलने पर कोई किसी की मज़ाक बनाने से नहीं चूकता, सब ठहाका लगाते हैं और बग़ैर किसी मनमुटाव के टीम वर्क जारी रहता है। ख़बर से मज़ाक हम करते नहीं, एक-दूसरे से तो कर ही सकते हैं। करते भी हैं। कहने वाले कह सकते हैं कि ये कोई पागलपन है या फिर वो ये भी कह सकते हैं कि हम लोग संवेदनहीन हैं, जो किसी दुर्घटना में मारे गए लोगों के बढ़ते death toll की ख़बर के साथ पूरी गंभीरता बरतते हुए भी हंस सकते हैं, तो मैं यही कहूंगा कि कह लीजिए जो कहना है लेकिन इतना तो सोचिए कि जो वीभत्स तस्वीरें हम आपको सिर्फ़ इसलिए नहीं दिखाते कि आप विचलित हो जाएंगे वो तस्वीरें हम ख़ुद घंटों तक देखते हैं। ना जाने कैसी-कैसी फ़ीड इनजस्ट होती हैं। विचलित होते हुए भी हमें विचलित नहीं होना होता। बिलकुल वैसे ही जैसे डॉक्टर किसी शव का पोस्टमार्टम करते हुए भी विचलित नहीं होता।
ऐसे में हंसी-मज़ाक ही तो अगली ख़बर को लेकर पूरी ईमानदारी के साथ जुटने का संबल देती है। चलता हूं एक ब्रेकिंग न्यूज़ आ रही है...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
माफ़ करना बिहारी भाइयों...
आपका यह शीर्षक ही आपके विचारों और अभिव्यक्तियों की कहानी कह रहा है |
आशा है आप ऐसे ही लिखते रहेंगे ,हमारी शुभकामनायें आपके साथ है ?
अनुराग, इस पोस्ट में आपका केवल "मुस्कान" दिखा अनुराग नहीं !
अब हम" स्टार टीवी" पर मुस्कान बिखेरे ,या उसके एंकर {आप जैसे } पर.
या फिर आपके ८ साल के मिडिया सफ़र पर !
हा हा!! मजाक में लिए. :)
wo PAPUNA wala artical achha laga .........aap kya kehte hai sir ji :)
hahahahahahha........ 9711540791
प्रिय अनुराग, आजकल जमाना इतना बदल गया है कि हम अब लेखनी भी सिर्फ मजे लेने के लिए करने लगे है,और इसका ठीकरा हम फोड़ते है काम पर....कहते है कि काम इतना तनाव वाला है कि अगर हम आपस में मजाक नही करे तो इस तनाव में जीना मुश्किल हो जाएगा। पहले तो सरदार और बिहारी सिर्फ चुटकुलों में मिलते थे लेकिन अब हमारा मजाक इनके बगैर अधूरा सा लगता है। हद तो तब हो जाती है जब हम मजे लेने के चक्कर में संवेदना की हदो को पार कर जाते है। अब हम सिर्फ मजाक ही नहीं करते बल्कि अपनी कल्पनाशीलता को शब्दों का रूप देकर थोड़ी देर के लिए मजे ले लेते है। मेरे इस कमेंट को लेकर आप ये मत सोचना कि मेरी भावनाओं को ठेस पहुंचा है और मैं इस पर सफाई दे रहा हूं। मुझे अफसोस तब होता है जब हम जैसे पत्रकार ऐसा करते है। जिनकी सोच से समाज का एक खास वर्ग अपनी सोच को बनाता है। जब हमारी सोच ही ऐसी हो जाएगी तो उस वर्ग का क्या होगा इसका अंदाजा लगाना बहुत ही मुश्किल है। जब बात ज्यादा बढ़ जाती है तो कहते है भाईयों मुझे माफ करना। पहले किसी को तमाचा मार दो और फिर कहो कि माफ कर दो। भाई दिल पे मत लेना.....मै तो बस ये बताने की कोशिश कर रहा था कि कल तक हमारा स्ट्रेस बस्टर शाम को पार्क में घूमना और अपने घरवालों के साथ चाय पीना होता था लेकिन अब तो सुबह की जौगिंग और शाम की चाय जब दफ्तर में पीनी पड़ेगी तो किसी न किसी की बलि तो चढ़ानी ही पड़ेगी न !!!!!!!
....आपको बुरा लगा Anonymous जी, माफ़ी चाहता हूं, आप कौन हैं ये तो मैं नहीं जानता लेकिन हैं मेरे आप-पास के ही। आप बिहारी है इसलिए आप बुरा मान गए वरना आपसे ज़्यादा तो हम यूपी वाले निशाने पर रहते हैं। मज़ाक समझते हैं ना आप, लेकिन शायद चुटकी और कटाक्ष में अंतर करने में कन्फ्युज़िया गए तनिक। आप चुटकी को चांटा समझ बैठे। आप अपना नाम बताने की हिम्मत कर लेते तो अगली बार से आपके सामने मज़ाक avoid कर पाते हमलोग।
Post a Comment