राहुल बाबा के नाम गुप्त चिट्ठी
विडंबना देखिए की इस देश में कुछ भी गुप्त नहीं रहता। मैंने यह चिट्ठी अपने राहुल बाबा के नाम गुप्त रूप से लिख कर सामान्य डाक से भेजी थी लेकिन यह भी सार्वजनिक हो गई। चौंकिए मत, आजकल गुप्त चिट्ठियां सामान्य डाक से भेजना ही सुरक्षित रह गया है। लेकिन बावजूद इसके यह चिट्ठी सार्वजनिक हो गई। दरअसल हुआ यों होगा कि डाकिए ने लिफाफे पर श्री राहुल गांधी लिखा देख कर समझा होगा कि शायद मोस्ट एलिजिबल बैचलर अर्थात सर्वाधिक योग्य कुंवारे राहुल बाबा के लिए किसी सोणी कुड़ी का बॉयोडाटा आया होगा, चलो खोलकर देखते हैं। वैसे भी आजकल बड़े-बड़ों की शादी-ब्याह को लेकर छोटे-मोटों के कान और पेट में खुजली रहती है। लिज़ हर्ले संग अरुण नायर के बाद अभिषेक संग एश्वर्या की शादी को लेकर भी लोग बावरे हुए जा रहे हैं। हालत यह है कि अभिषेक और एश्वर्या आपस में एक-दूसरे को इतना नहीं जानते होंगे जितना लोग उन दोनों के बारे में जानते हैं।
डाकिए ने सुन रखा होगा कि आजकल राहुल बाबा पर भी शादी का खासा प्रेशर है। बेचारा डाकिया हर जिज्ञासू भारतीय की तरह जानना चाहता होगा कि कैसी होगी राहुल की ड्रीम गर्ल? कहां कि होगी, भारत की या विदेश की? कहां होगी उनकी शादी, भारत में या इटली में? क्या पहनेंगे वह, भारतीय परिधान या पश्चिमी परिधान? शादी में कौन-कौन बुलाया जाएगा? क्या-क्या पकेगा? वगैरह-वगैरह। आजकल हर भारतवासी ख्यातिप्राप्त कुंवारों की शादी को लेकर अटकलें लगाने में ही तो बिजी है और अटकलों की जिज्ञासा के इसी प्रवाह चिट्ठी खोलने वाले डाकिए को क्या पता कि राहुल बाबा के पास शादी-वादी के लिए टाइम-शाइम ही कहां है, वह तो आजकल उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की नइया पार लगाने के लिए चप्पू चला रहे हैं। बहरहाल, अब जब यह चिट्ठी खुल ही गई है तो इसे आप भी पढ़िए-
प्यारे राहुल बाबा,
जब तक सूरज-चांद रहेगा, तय है आपका नाम रहेगा। अब नाम का तो ऐसा है न राहुल बाबा कि बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा। टेंशन लेने का नहीं राहुल बाबा, जो मन में आए एकदम बिंदास बोल देने का कहीं पर भी। वैसे भी बाबा आजकल आप जो गर्मागरम, तले और भुने बयान परोस रहे हैं न, सच कहता हूं, सुबह-सुबह अखबार की डिस्पोसेबल प्लेट में आपके चटपटे बयानों का नाश्ता करके तबीयत प्रसन्न हो जाती है कसम से। आपका बाबरी वाला बयान तो मैंने पूरे एक हफ्ते तक नाश्ते में, लंच में और डिनर तक में खाया। आपका बयान न हुआ बासी कढ़ी हो गया, जितना पुराना हो रहा है उसका उतना ही जायका बढ़ रहा है। बस आप विरोधियों द्वारा अपने बयानों का तीयापांचा किए जाने पर आपा मत खो बैठिएगा। क्योंकि बयान का विरोध करना तो राजनैतिक कुश्ती के अखाड़े का सबसे पहला नियम है।
खैर, मैंने यह चिट्ठी आपको यह बताने के लिए लिखी है कि मुझे आपकी यह बात सबसे अच्छी लगी कि गांधी परिवार ने जो ठाना उसे हासिल भी किया। अब देखिए न, आपने ठाना कि आपको ऐसा बयान देना है और आपने दिया। मुझे तो आपके माध्यम से यह भी पहली बार पता चला कि देश की आजादी भी आपके परिवार ने ठान कर हासिल की थी। वरना मैं तो अब तक न जाने कितने क्रांतिकारियों को देश की आजादी के लिए जिम्मेदार मानता था। पाक पर दिया गया आपका बयान भी लाजबाव रहा। और वैसे उस समय आपके परिवार को क्या पता था कि 1971 में बनाया गया बांग्लादेश 2007 के वर्ल्ड कप में भारत को हरा देगा। लोग कुछ भी कहें लेकिन आपके परिवार द्वारा उस समय उठाया गया कदम आज टीम इंडिया की पतली हालत को सुधारने में अहम भूमिका निभा सकता है। टीम इंडिया में आज जो उठापटक हो रही है यह वैसे तो बहुत पहले ही होनी चाहिए थी लेकिन ऑल क्रेडिट गोज टू योर फैमिली, न हम बांग्लादेश से हारते और न हमें पता चलता कि हमारी हालत क्या है।
आपको तो फौरन से पेशतर बीसीसीआई में कोई दमदार पद दिए जाने की सिफारिश की जानी चाहिए। खेल और राजनीति की दो नावों पर पैर रखकर अपना बेड़ा पार कैसे लगाया जाता है इसकी ट्रेनिंग आप शरद पवार साहब से ले सकते हैं। बहरहाल, अपने बेबाक बयानों के लिए बधाई स्वीकारें। आगे भी आपसे ऐसे ही बयान अपेक्षित हैं। बस आप अपने पार्टी प्रवक्ताओं को इतना समझा दें कि आपके सीधे-सपाट बयानों की लीपातोपी करने के चक्कर में उन्हे तोड़े-मरोड़े नहीं। आखिर में इतना ही कहना चाहता हूं कि 'जब तक सूरज-चांद रहेगा, तय है आपका नाम रहेगा।', मेरी ओर से अपनी शान में इस नारे को पचास हजार से गुणा कर लें।
आपका शुभचिंतक।
(आज दैनिक भास्कर में प्रकाशित)
4 comments:
बढिया लिखा है...वैसे "रॉल" भाई के बारे में मेरा हिन्दी अनुवाद जरूर पढें...टाईटल है "नेहरू-गाँधी राजवंश"...
भाई मजा आ गया
हे हे राहुल बाबा के नाम गुप्त चिट्ठा हमने भी पढ़ लिया। खूब जोरदार लिखा है।
अनुराग प्यारे....पहले तो अपना ध्यान रखो और जल्दी से ठीक हो जाओ...रही बात तुम्हारे लेख पर टिप्पणी की...तो अब जब आया हूं तो कुछ करके ही जाऊंगा...अफसोस है...अच्छी बात है...काम पूरा नहीं होने का अफसोस होना भी चाहिए...हालांकि तुम्हारे पूरे लेख से कई लोगों को ये भी लगेगा कि बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाने से दुखी हो तुम...लेकिन जो लोग तुम्हें जानते हैं (और लड़कियों के सामने मैं हमेशा ये दावा करता हूं कि मैं तुम्हें जानता हूं और तुम मेरे मुरीद हो).....तो जो लोग तुम्हें जानते हैं उन्हें पता है कि तुम 'काम या असाइनमेंट' पूरा नहीं हो पाने से दुखी हो...आहत हो...कि मैं चैनल के लिए कितना कुछ कर पाता पर नहीं हो पाया...और ये अच्छा भी है...ये अफसोस अच्छा है...ये दुख अच्छा है...
जल्दी से ठीक हो जाओ...और क्या कहूं...
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